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________________ 4/1 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 189 चतुर्थपरिच्छेदः प्रमाणविषयविमर्शः 1. अथोक्तप्रकारं प्रमाणं किं निर्विषयम्, सविषयं वा? यदि निर्विषयम्; कथं प्रमाणं केशोण्डुकादिज्ञानव? अथ सविषयम्; कोस्य विषयः? इत्याशङ्कय विषयविप्रतिपत्तिनिराकरणार्थं 'सामान्यविशेषात्मा' इत्याद्याह सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः॥ चतुर्थपरिच्छेद प्रमाण-विषय विमर्श ___अभी तक आचार्य माणिक्यनन्दी ने प्रमाण का लक्षण "स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम्" बताया तथा उस पर विभिन्न दार्शनिकों के विचारों की समीक्षा भी की। 1. अब यहाँ प्रश्न होता है कि वह प्रमाण निर्विषयी है अथवा सविषयी है? यदि निर्विषयी अर्थात् विषय रहित है [कुछ भी नहीं जानता है] तो वह प्रमाण कैसे कहलायेगा? अर्थात् नहीं कहला सकता, जैसे कि केशोण्डुकादि ज्ञान प्रमाण नहीं कहलाते हैं। यदि प्रमाण सविषयी है तो प्रश्न उठता है कि उसका क्या विषय है? इस प्रकार के प्रश्न को लेकर प्रमाण के विषय सम्बन्धी विवाद को दूर करने के लिए वह सामान्य विशेषात्मक है ऐसा आचार्य कहते हैं सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः॥
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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