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____ 134. ननु चातीन्द्रियार्थस्य द्रष्टुः कस्यचिदाप्तस्याभावात् तत्राऽपौरुषेयस्यागमस्यैव प्रामाण्यात् कथमाप्तवचननिबन्धनं तद्? इत्यपि मनोरथमात्रम्; अतीन्द्रियार्थद्रष्टुर्भगवतः प्राक्प्रसाधितत्वात्, आगमस्य चाऽपौरुषेयत्वासिद्धेः। तद्धि पदस्य, वाक्यस्य, वर्णानां वाऽभ्युपगम्येत प्रकारान्तराऽसम्भवात्? तत्र न तावत्प्रथमद्वितीयविकल्पौ घटेते; तथाहि-वेदपदवाक्यानि पौरुषेयाणि पदवाक्यत्वाद्भारतादिपदवाक्यवत्।
__135. अपौरुषेयत्वप्रसाधकप्रमाणाभावाच्च कथमपौरुषेयत्वं वेदस्योपपन्नम्? न च तत्प्रसाधकप्रामाणाभावोऽसिद्धः; तथाहि-तत्प्रसाधक
वेद के अपौरुषेयत्व का निरास
134. शंका- अतीन्द्रिय पदार्थों को जानने देखने वाले आप्त नामा पुरुष होना ही असम्भव है, अतः अपौरुषेय आगम को ही प्रमाणभूत माना गया है, फिर जो ज्ञान आप्त वचन के निमित्त से हो वह आगम प्रमाण है ऐसा कहना किस प्रकार सिद्ध होगा?
समाधान- यह शंका असार है, अतीन्द्रिय पदार्थों को जानने वाले भगवान अरिहन्त देव हैं ऐसा सर्वज्ञ सिद्धि में निश्चय हो चुका है।
आगम अपौरुषेय हो नहीं सकता, आप अपौरुषेय किसको मानते हैं पद को, वाक्य को या वर्णों को? इनको छोड़कर अन्य कोई तो आगम नहीं है। पद और वाक्य को अपौरुषेय कहना शक्य नहीं, क्योंकि पद स्वयं रचनाबद्ध हो जाय ऐसा देखा नहीं जाता। अनुमान प्रयोग वेद के पद
और वाक्य पौरुषेय (पुरुष द्वारा रचित) है क्योंकि पद वाक्य रूप है, जैसे महाभारत आदि शास्त्रों के पद एवं वाक्य पौरुषेय होते हैं।
135. वेद को अपौरुषेय सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण भी दिखाई नहीं देता, फिर किस प्रकार उसको अपौरुषेय मान सकेंगे? वेद के अपौरुषेयत्व प्रसाधक प्रमाण नहीं है यह बात असिद्ध भी नहीं। वेद के अपौरुषेयत्व को कौन सा प्रमाण सिद्ध करेगा? प्रत्यक्ष, अनुमान या अर्थापत्ति आदिक? श्रावण प्रत्यक्ष प्रमाण तो कर नहीं सकता क्योंकि वह तो केवल शब्द के स्वरूप को जानता है, यह सुनायी देने वाला पदवाक्य
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 177