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________________ 3/98 यतस्तावतैव चकार एवकारार्थे निश्चितविपक्षासम्भवहेतुप्रयोगमात्रेणैव साध्यसिद्धिः। तेन पक्षः तदाधारसूचनाय उक्तः ॥98।। तेन पक्षो गम्यमानोपि व्युत्पन्नप्रयोगे तदाधारसूचनाय साध्याधारसूचनायोक्तः। यथा च गम्यमानस्यापि पक्षस्य प्रयोगो नियमेन कर्त्तव्यस्तथा प्रागेव प्रतिपादितम्। तावता च साध्यसिद्धिः ॥97॥ सूत्रार्थ- उतने तथोपपत्ति आदि रूप हेतु मात्र से ही साध्य की सिद्धि भी हो जाती है। सूत्रोक्त च शब्द एवकार अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अर्थात् निश्चित विपक्ष असम्भवरूप हेतु प्रयोग से ही साध्य सिद्धि हो जाती है। उसके लिये दृष्टान्तादि की जरूरत नहीं पड़ती। तेन पक्षः तदाधारसूचनाय उक्तः ॥98॥ सूत्रार्थ- इसी कारण से साध्य के आधार की सूचना करने के लिए पक्ष का प्रयोग करने को कहा है। ज्ञात रहते हुए भी पक्ष का प्रयोग व्युत्पन्न के प्रति किया जाता है कि जिससे साध्य का आधार सूचित हो। पक्ष का प्रयोग नियम से करना चाहिए। ऐसा पहले अच्छी तरह से सिद्ध कर आये हैं। यहाँ हम देखते हैं कि आचार्य ने अनुमान प्रमाण का विवेचन बहुत विस्तृत रूप से किया है। इस प्रकरण में अनुमान हेतु अविनाभाव, तर्क उपनय, निगमन, दृष्टान्त, पक्ष, साध्य आदि सभी का लक्षण उन्होंने किया है। इनमें सबसे अधिक वर्णन हेतु का है, क्योंकि अनुमान प्रमाण का आधार स्तम्भ हेतु है। हेतु के कितने भेद होते हैं, इसमें परवादियों के यहाँ विभिन्न मान्यतायें हैं। बौद्ध हेतु के तीन भेद मानते हैं। कार्य हेतु, स्वभाव हेतु और अनुपलब्धि हेतु। किन्तु इनमें पूर्वचर आदि अन्य हेतुओं का अन्तर्भाव अशक्य है अत: बौद्धों की मान्यता का निरसन करते हुए पूर्वचर आदि का सयुक्तिक विवेचन किया है। इस ग्रन्थ में हेतुओं के कुल बाईस भेद किये गये हैं। प्रभाचन्द्राचार्य द्वारा विरचित प्रमेयकमलमार्तण्ड के अनुमान विमर्श की संक्षिप्त तथा सारभूत हिन्दी व्याख्या यहाँ पूर्ण हुयी। 174:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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