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________________ 3/96-97 कुतो व्युत्पन्नानां तथोपपत्त्यन्यथाऽनुपपत्तिभ्यां प्रयोगनियम इत्याशङ्कय हेतुप्रयोगो हीत्याद्याह हेतुप्रयोगो हि यथा व्याप्तिग्रहणं विधीयते, सा च तावन्मात्रेण व्युत्पन्नैरवधार्यते इति ॥96॥ यतो हेतोः प्रयोगो व्याप्तिग्रहणानतिक्रमेण विधीयते। सा च व्याप्तिस्तावन्मात्रेण तथोपपत्त्यन्यथानुपपत्तिप्रयोगमात्रेण व्युत्पन्नैर्निश्चीयते इति न दृष्टान्तादिप्रयोगेण व्याप्त्यवधारणार्थेन किञ्चित्प्रयोजनम्। नापि साध्यसिद्ध्यर्थं तत्प्रयोगः फलवान्तावतैव च साध्यसिद्धिः ॥97॥ सूत्रार्थ- यह प्रदेश अग्निमान है क्योंकि धूमपना की उत्पत्ति है। यह तथोपपत्ति हेतु प्रयोग हुआ। अथवा यह देश अग्निमान है (अग्नियुक्त) क्योंकि धूमपने की अन्यथानुपपत्ति है। यह अन्यथानुपपत्ति हेतु प्रयोग है। व्युत्पन्न पुरुषों के प्रति तथोपपत्ति अथवा अन्यथानुपपत्ति प्रयोग का नियम किस कारण से करते हैं? ऐसी आशंका का समाधान करते हैं हेतुप्रयोगो हि यथाव्याप्तिग्रहणं विधीयते, सा च तावन्मात्रेण व्युत्पन्नैरवधार्यते ॥96॥ सूत्रार्थ- उस तरह का हेतु प्रयोग करते हैं कि जिस तरह से व्याप्ति का ग्रहण किया जाय, अतः वह व्याप्ति उतने मात्र से (हेतु प्रयोग मात्र से) व्युत्पन्न पुरुषों द्वारा अवधारित (निश्चित) की जाती है। व्याप्ति ग्रहण का अनतिक्रम रखते हुए हेतु के प्रयोग का विधान किया जाता है, और वह व्याप्ति भी तथोपपत्ति अथवा अन्यथानुपपत्ति प्रयोग मात्र से व्युत्पन्नमति द्वारा निश्चित की जाती है। इसीलिये दृष्टान्तादि के प्रयोग से व्याप्ति अवधारण करना आदि कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता। तथा साध्य की सिद्धि के लिये भी दृष्टान्तादि का प्रयोग प्रयोजनभूत नहीं होता है प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 173
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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