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________________ 3/80-84 व्यापकानुपलब्धिर्यथा नास्त्यत्र शिंशपा वृक्षानुपलब्धेः ॥80॥ कार्यानुपलब्धिर्यथानास्त्यत्राऽप्रतिबद्धसामोऽग्निधूमानुपलब्धेः ॥81॥ नास्त्यत्र धूमोऽनग्नेः ॥820 इति कारणानुपलब्धिः । न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं कृत्तिकोदयानुपलब्धेः ॥83॥ इति पूर्वचरानुपलब्धिः । नोदगाद्भरणिर्मुहूर्तात्प्राक् तत एव 184॥ हुआ कि अनुपलब्धिरूप हेतु कार्यकारी है। व्यापकानुपलब्धि हेतु का उदाहरणनास्त्यत्र शिंशपा वृक्षानुपलब्धेः ॥80॥ सूत्रार्थ- यहाँ पर शिंशपा नहीं है क्योंकि वृक्ष की अनुपलब्धि है। कार्यानुपलब्धि तथा कारणानुपलब्धि का उदाहरण नास्त्यत्राप्रतिबद्धसामोऽग्नि—मानुपलब्धेः ॥81॥ नास्त्यत्र धूमोऽनग्नेः ॥82॥ सूत्रार्थ- यहाँ अप्रतिबद्ध सामर्थ्यवाली अग्नि नहीं, क्योंकि धूम की अनुपलब्धि है। तथा- यहाँ धूम नहीं क्योंकि अग्नि की अनुपलब्धि पूर्वचर अनुपलब्धिहेतु का उदाहरणन भविष्यति मुहूर्तान्ते शकट कृतिकोदयानुपलब्धेः ॥83।। सूत्रार्थ- एक मुहूर्त के अनन्तर रोहिणी का उदय नहीं होगा, क्योंकि कृतिकोदय की अनुपलब्धि है। उत्तरचर अनुपलब्धि हेतु का उदाहरण प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 167
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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