SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3/79 128 दृश्यते हि विशाले गवि सास्नादिमत्त्वात्प्रवर्त्तितगोव्यवहारो मूढमतिर्विशङ्कटे सादृश्यमुत्प्रेक्षमाणोपि न गोव्यवहार प्रवर्तयतीति विशङ्कटे वा प्रवर्त्तितो गोव्यवहारो न विशाले, स निमित्तप्रदर्शनेन गोव्यवहारे प्रवर्त्यते । सास्नादिमन्मात्रनिमित्तको हि गोव्यवहारस्त्वया प्रवर्त्तितपूर्वो न विशालत्वविशङ्कटत्वनिमित्तक इति । यथा महत्यां शिंशपायां प्रवर्त्तितवृक्षव्यवहारो मूढमतिः स्वल्पायां तस्यां तद्व्यवहारमप्रवर्त्तयन्निमित्तोपदर्शनेन प्रवर्त्यते वृक्षोयं शिंशपात्वादिति । जाता है। 128. देखा भी जाता है कि जिस मूढमति को विशाल बैल में (अथवा गाय में) सास्नादि हेतु द्वारा बैलपने का व्यवहार प्रवर्त्तित किया जाता है अर्थात् इस पशु के गले में चर्म लटक रहा है इसे सास्ना कहते हैं जिसमें ऐसी सास्ना होती है उसे बैल (या गाय) कहते हैं ऐसा किसी ने एक विशाल बैल को दिखलाकर मूढमति को समझाया पुनश्च वह मूढमति छोटे बैल को देखता है उसमें उसे सास्नादि दिखायी देता है तो भी वह मूढ बैलपने का व्यवहार नहीं करता (अर्थात् यह बैल है ऐसा नहीं समझता है) अथवा किसी मूढ को छोटे बैल में शुरूआत में बैलपने का ज्ञान कराया था वह विशाल बैल में बैलपने को नहीं जान रहा है उस मूढमति पुरुष को सास्नादि निमित्त को दिखलाकर गो व्यवहार में प्रवर्तित कराया जाता है। अर्थात् बैलपने का व्यवहार केवल सास्ना निमित्तक है तुम्हारे को पहले जो बैल में प्रवृत्ति करावी थी वह केवल सास्ना निमित्तक थी विशाल या छोटेपन की निमित्तक नहीं थी, अर्थात् विशाल हो चाहे छोटा हो जिस पशु में सास्ना होती है उसे बैल अथवा गाय कहते हैं इससे गोत्व का व्यवहार - बैल या गाय का कार्य लिया जाता है इत्यादि रूप से मूढ को समझाते हैं। तथा बड़े शिंशपावृक्ष में शिंशपावृक्षत्व का व्यवहार जिसको प्रवर्तित कराया है वह मूडमति छोटे शिंशपावृक्ष में उसका व्यवहार नहीं करता तो उसे शिंशपावृक्ष निमित्त दिखलाकर प्रवृत्ति करायी जाती है कि यह शिंशपारूप होने से वृक्ष है। इस प्रकार निश्चय 166 :: प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार:
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy