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________________ 3/85-86 कृत्तिकोदयानुपलब्धेरेव। इत्युत्तरचरानुपलब्धिः । नास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धेः ॥85॥ इति सहचरानुपलब्धिः । अथानुपलब्धिः प्रतिषेधसाधिकैवेति नियमप्रतिषेधार्थं विरुद्धेत्याद्याहविरुद्धानुपलब्धिः विधौ त्रेधा विरुद्धकार्यकारणस्वभावानुपलब्धिभेदात् ॥86॥ विधेयेन विरुद्धस्य कार्यादेरनुपलब्धिर्विधौ साध्ये सम्भवन्ती त्रिधा भवति- विरुद्धकार्यकारणस्वभावानुपलब्धिभेदात्। तत्र विरुद्धकार्यानुपलब्धिर्यथा नोदगाद् भरणिर्मुहूर्तात् प्राक् तत एव ॥84॥ सूत्रार्थ- एक मुहूर्त पहले भरणि का उदय नहीं हुआ था क्योंकि कृतिकोदय की अनुपलब्धि है। सहचर अनुपलब्धि हेतु का उदाहरणनास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धेः ॥85॥ सूत्रार्थ- इस तुला में उन्नाम-ऊँचापना नहीं क्योंकि नाम-नीचापन की अनुपलब्धि है। ___ अनुपलब्धिरूप हेतु केवल प्रतिषेधरूप साध्य को ही सिद्ध करता है ऐसा किसी का मंतव्य है उस नियम का निषेध करने के लिए अग्रिम सूत्र अवतरित होता है विरुद्धानुपलब्धि: विधौ त्रेधा विरुद्धकार्यकारणस्वभावानुपलब्धिभेदात् ॥86॥ सूत्रार्थ- विधिरूप (अस्तित्वरूप) साध्य के रहने पर विरुद्ध अनुपलब्धि हेतु के तीन भेद होते हैं- विरुद्ध कार्यानुपलब्धि, विरुद्धकारकणानुपलब्धि, विरुद्धस्वभावानुपलब्धि। साध्य के विरुद्ध कार्यादि की अनुपलब्धि होना हेतु उक्त तीन प्रकार का है। 168:: प्रमेयकमलमार्तण्डसार:
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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