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________________ 3/64 स्वापाद्यवस्थायामपि ज्ञानस्य प्रसाधितत्वात्। ततो भाव्यतीतयोर्मरणजाग्रबोधयोरपि नारिष्टोद्बोधौ प्रति हेतुत्वम्, येनाभ्यामनैकान्तिको हेतुः स्यादिति स्थितम्। यथा च पूर्वोत्तरचारणिोन तादात्म्यं तदुत्पत्तिर्वा तथासहचारिणोरपि परस्परपरिहारेणावस्थानात्सहोत्पादाच्च ॥64॥ 117. ययोः परस्परपरिहारेणावस्थानं न तयोस्तादात्म्यम् यथा घटपटयोः, परस्परपरिहारेणावस्थानं च सहचारिणोरिति। एककालत्वाच्चानयोर्न तदुत्पत्तिः। ययोरेककालत्वं न तयोस्तदुत्पत्तिः यथा सव्येतरगोविषाणयोः, एककालत्वं च सहचारिणोरिति। दिया है, वहाँ पर निद्रादि अवस्था में ज्ञान का सद्भाव होता है ऐसा सिद्ध हो चुका है, अतः “निद्रा लेने के पहले ज्ञान प्रातः काल में जागकर उठने के अनन्तर होने वाले ज्ञान का हेतु होता है, अन्तराल काल में ज्ञान का अभाव रहता है, इसलिये काल व्यवधान वाले पदार्थों में भी कार्यकारणभाव है" इत्यादि कथन असत्य सिद्ध होता है। इस प्रकार "भावी मरण और अतीत जाग्रद् बोध क्रमशः अरिष्ट तथा उद्बोध के हेतु होने से जैन का कारण हेतु का लक्षण अनेकांतिक होता है" ऐसा बौद्ध का प्रतिपादन खंडित हो गया। जैसे पूर्वचर और उत्तरचर हेतु में तादात्म्य तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं होता वैसे सहचारिणोरपि परस्परपरिहारेणावस्थानात्सहोत्पादाच्च ॥64॥ सूत्रार्थ- सहचरभूत साध्यसाधनों में भी तादात्म्य और तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं हो सकता क्योंकि ये परस्पर का परिहार करके अवस्थित रहते हैं तथा युगपत् प्रादुर्भूत होते हैं। 117. जिन दो पदार्थों का परस्पर परिहार करके अवस्थान होता है उनमें तादात्म्य नहीं होता, जैसे घट और पट में तादात्म्य नहीं है, सहचारि पदार्थ भी परस्पर परिहार करके अवस्थित हैं अतः इनमें तादात्म्य नहीं हो सकता। तथा सहचारी पदार्थों में एक काल भाव होने प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 153
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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