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ततः शरीरनिर्वर्त्तकाऽदृष्टादिकारणकलापादरिष्टकरतलरेखादयो निष्पन्नाः भाविनो मरणराज्यादेरनुमापका इति प्रतिपत्तव्यम् ।
116. जाग्रद्बोधस्तु प्रबोधबोधस्य हेतुरित्येतत्प्रागेव प्रतिविहितम्, अंडे लेकर निकल रही हैं इत्यादि तथा सिन्दूर के समान लाल रंग वाले एक आम को पहले किसी ने खाया था बाद में प्रकाश रहित स्थान पर किसी आम को खाया तो उसके मधुर रस से अनुमान प्रवृत्त होता है कि यह आम सिंदूरवर्णी हैं क्योंकि मधुर रसवाला है, इन अनुमानों के हेतु तादात्म्य तदुत्पत्ति से रहित होकर भी केवल स्वसाध्य के अविनाभावी होने के कारण गमक - स्व स्व साध्य को सिद्ध करने वाले होते हैं। अतः अविनाभाव के निमित्त से हेतु का गमकपना निश्चित होता है । )
जैसा कि कहा है कि
कार्यकारणभाव आदि सम्बन्धों की दो गति हैं अर्थात् दो प्रकार हैं- एक नियमरूप सम्बन्ध (अविनाभाव ) और एक अनियमरूप सम्बन्ध, यदि हेतु में अनियमत्व है तो वह अनुमान का कारण नहीं हो
सकता ॥1॥
वक्तृत्वादि उक्त सभी हेतु अनियमरूप हैं अतः अनुमान के उत्पत्ति ये कारण नहीं हैं, तथा केवल अविनाभावरूप नियम वाले हेतु से ऐसा कोई साध्य नहीं है कि जो अनुमानित नहीं होता हो। अर्थात् मात्र नियमरूप हेतु से अनुमान की उत्पत्ति अवश्य होती है किन्तु नियम रहित हेतु चाहे तादात्म्यादि से युक्त हो तो भी उससे अनुमान प्रादुर्भूत नहीं होता ॥2॥
इसलिए निश्चय होता है कि अरिष्ट करतल रेखा आदि शरीर की रचना करने वाले अदृष्ट कर्म आदि कारण समूह से उत्पन्न होते हैं और वे भावी मरण और राज्यादि के अनुमापक ( अनुमान करने वाले) होते हैं।
116. जाग्रद्बोध प्रबोध अवस्था के बोध का हेतु होता है ऐसे मंतव्य का निराकरण तो पहले ही (मोक्ष-विचार नामा प्रकरण में) कर
152: : प्रमेयकमलमार्त्तण्डसारः