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3/62-63 त्म्यतदुत्पत्तिप्रतिबन्धे सत्यपि असर्वज्ञत्वे श्यामत्वे च साध्ये गमकत्वाप्रतीतेः। तदभावेपि चाविनाभावप्रसादात् कृत्तिकोदय चन्द्रोदय-उद्गृहीताण्डकपिपीलिकोत्सर्पणएकाम्रफलोपलभ्यमानमधुररसस्वरूपाणां हेतूनां यथाक्रम शकटोदय-समानसमयसमुद्रवृद्धि-भाविवृष्टिसमसमयसिन्दूरारुणरूपस्वभावेषु साध्येषु गमकत्वप्रतीतेश्च। तदुक्तम्
कार्यकारणभावादिसम्बन्धानां द्वयी गतिः। नियमानियमाभ्यां स्यादनियमादनङ्गता ॥ सर्वेप्यनियमा ह्येते नानुमोत्पत्तिकारणम्। नियमात्केवलादेव न किञ्चिन्नानुमीयते ॥2॥
जैन- अविनाभाव होने से एक को देखकर दूसरे का अनुमान होता है। जहाँ पर तादात्म्य या तदुत्पत्ति लक्षण वाले सम्बन्ध होते हैं उनमें भी अविनाभाव के कारण ही परस्पर का गमकपना सिद्ध होता है। अविनाभाव के नहीं होने से ही वक्तृत्व तत्पुत्रत्व आदि हेतु तादात्म्य और तदुत्पत्ति के रहते हुए भी असर्वज्ञत्व और श्यामत्व रूप साध्य के गमक नहीं हो पाते।
तादात्म्य तथा तदुत्पत्ति नहीं होने पर भी केवल अविनाभाव के प्रसाद से कृतिकोदय हेतु, चन्द्रोदय हेतु तथा उद्गृहीत-अंडक पिपीलिका उत्सर्पण-अर्थात् अंडे को लेकर चींटियों का निकलना रूप हेतु, एक आम्रफल में उपलब्ध हुआ मधुररस स्वरूप हेतु, इतने सारे हेतु यथाक्रम से अपने अपने साध्यभूत रोहिणी उदय, समान समय की समुद्र वृद्धि, भावी वर्षा, समान समय का सिंदूरवत् लालवर्ण को सिद्ध करते हुए प्रतीति में आते हैं।
(यहाँ आचार्य के कथन का भावार्थ यह है कि एक मुहूर्त के अनंतर रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा क्योंकि कृतिका नक्षत्र का उदय हो रहा है। इस अनुमान के कृतिकोदय हेतु में साध्य के साथ तादात्म्य और तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं है फिर भी यह स्वसाध्यभूत रोहिणी उदय का गमक अवश्य है, इसी प्रकार समुद्र की वृद्धि अभी जरूर हो रही है क्योंकि चन्द्रमा का उदय हुआ है, वर्षा होने वाली है क्योंकि चींटियाँ
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 151