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________________ 3/61 109. प्रयोगः-यद्यत्काले अनन्तरं वा नास्ति न तस्य तेन तादात्म्यं तदुत्पत्तिर्वा यथा भविष्यच्छङ्खचक्रवर्त्तिकाले असतो रावणादेः, नास्ति च शकटोदयादिकाले अनन्तरं वा कृत्तिकोदयादिकमिति। तादात्म्यं हि समसमयस्यैव कृतकत्वानित्यत्वादेः प्रतिपन्नम्। अग्निधूमादेश्चान्योन्यमव्यवहितस्यैव तदुत्पत्तिः, न पुनव्यवहितकालस्य अतिप्रसङ्गात्। 110. ननु प्रज्ञाकराभिप्रायेण भाविरोहिण्युदयकार्यतया कृत्तिकोदयस्य गमकत्वात्कथं कार्यहेतौ नास्यान्तर्भाव इति चेत्? कथमेवमभूद्भरण्युदयः काल व्यवधान में तो तादात्म्य और तदुत्पत्ति की अनुपलब्धि ही रहेगी। 109. जो जिस काल में या अनंतर में नहीं है उसका उसके साथ तादात्म्य तदुत्पत्तिरूप सम्बन्ध नहीं पाया जाता है, जैसे आगामीकाल में होने वाले शंख नामा चक्रवर्ती के समय में असद्भूत रावणादिका तादात्म्य या तदुत्पत्तिरूप सम्बन्ध नहीं पाया जाता। रोहिणी नक्षत्र के उदयकाल में अथवा अनंतर कृतिका नक्षत्र का उदय नहीं पाया जाता अतः उन नक्षत्रों का तादात्म्यादि सम्बन्ध नहीं होता। जो समान समयवर्ती होते हैं ऐसे कृतकत्व और नित्यत्वादि का ही तादात्म्य सम्बन्ध हो सकता है। तथा अग्नि और धूम आदि के सामान जो परस्पर में अव्यवहित रहते हैं उनमें ही तदुत्पत्ति सम्बन्ध होना सम्भव है, काल व्यवधानभूत पदार्थों में नहीं। ऐसा नहीं मानेंगे तो अतिप्रसंग होगा। अर्थात् अतीत और अनागतवर्ती में भी तादात्म्यादि मानने का अनिष्ट प्रसंग प्राप्त होगा। 110. बौद्ध- प्रज्ञाकर गुप्त नामा ग्रन्थकार का मन्तव्य है कि भावी रोहिणी का उदय कृतिकोदय का कार्य है अतः कृतिकोदय का गमक होता है, इसलिए इस रोहिणी उदय का कार्य हेतु में अन्तर्भाव कैसे नहीं होगा? अर्थात् इसका अन्तर्भाव कार्य हेतु में होना चाहिये। जैन- तो फिर "भरणी" का उदय एक मुहूर्त्त पहले हो चुका क्योंकि कृतिका का उदय हो रहा है" इस अनुमान की किस प्रकार प्रवृत्ति होगी? अर्थात् इस हेतु का किसमें अन्तर्भाव करेंगे? 144:: प्रमेयकमलमार्तण्डसार:
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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