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3/61 कृत्तिकोदयादित्यनुमानम्? अथ भरण्युदयोपि कृत्तिकोदयस्य कारणं तेनायम
दोषः,
111. ननु येन स्वभावेन भरण्युदयात्कृत्तिकोदयस्तेनैव यदि शकटोदयात्; तदा भरण्युदयादिवाऽतोपि पश्चादसौ स्यात्। यथा च
बौद्ध- भरणी का उदय भी कृतिकोदय का कारण है अत: उक्त अनुमान प्रवृत्त नहीं होना आदि दोष नहीं आयेगा।
111. जैन- जिस स्वभाव द्वारा भरणी उदय से कृतिकोदय हुआ उसी स्वभाव द्वारा रोहिणी उदय से कृतिकोदय हुआ है क्या? यदि हाँ तो भरणी उदय के बाद जैसे कृतिका उदय होता है वैसे रोहिणी उदय के बाद भी कृतिका उदय होना चाहिए? तथा जिस प्रकार रोहिणी उदय के पहले कृतिका उदय होता है उस प्रकार भरणी उदय के पहले भी कृतिका उदय होना चाहिए था?
तथा इस प्रकार अतीत और अनागत कारणों का एक कार्य में व्यापार होना स्वीकार करते हैं तो आस्वाद्यमान रस का अतीत रस और भावीरूप दोनों ही कारण हो सकते हैं? (क्योंकि अतीत और अनागत कारणों का एकत्र कार्य में व्यापार होना स्वीकार कर लिया) फिर वर्तमानरूप की अथवा अतीतरूप की प्रतीति संभावित नहीं रहेगी।
अभिप्राय यह है कि वर्तमान कार्य में अनागत हेतु होता है तो उसका अवबोध किस प्रकार होगा? अर्थात् नहीं हो सकता। अतीतकाल
और एक काल अर्थात् वर्तमानकाल है जिनसे उन पदार्थों का बोध होता है (कारणहेतु से) न कि अनागतों का। ऐसा बौद्ध अभिमत प्रमाणवार्तिक ग्रन्थ में कहा है- यह भी उक्त कथन से अयुक्त हो जाता है।
इस चर्चा का सार यह है कि बौद्ध पूर्वचर उत्तरचर आदि हेतु को नहीं मानते अतः प्रश्न होता है कि कृतिकोदय आदिरूप पूर्वचर आदि हेतुओं का अन्तर्भाव किस हेतु में किया जाय? उनके यहाँ तीन हेतु माने हैं-कार्य हेतु, स्वभाव हेतु और अनुपलब्धि हेतु। तादात्म्य सम्बन्ध वाले पदार्थ में स्वभाव हेतु प्रवृत्त होता है एवं अनुपलब्धि हेतु
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 145