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________________ 3/59 सा चोपलब्धिर्द्विप्रकारा भवत्यविरुद्धोपलब्धिर्विरुद्धोपलब्धिश्चेतिअविरुद्धोपलब्धिर्विधौ षोढा व्याप्यकार्यकारणपूर्वोत्तरसहचरभेदात् ॥59॥ 103. तत्र साध्येनाविरुद्धस्य व्याप्यादेरुपलब्धिर्विधौ साध्ये षोढा भवति व्याप्यकार्यकारणपूर्वोत्तरसहचरभेदात्। ___104. ननु कार्यकारणभावस्य कुतश्चित्प्रमाणादप्रसिद्धः कथं कार्य कारणस्य तद्वा कार्यस्य गमकं स्यादित्यप्यास्तां तावद्विषयपरिच्छेदे सम्बन्धपरीक्षायां कार्यकारणतादिसम्बन्धस्य प्रसाधयिष्यमाणत्वात्। होता है उस प्रकार विधि रूप साध्य में भी उसी निमित्त से अनुपलब्धि हेतु गमक होता है। आगे स्वयं आचार्य इस विषय को कहेंगे। उपलब्धि दो प्रकार की है अविरुद्धोपलब्धि और विरुद्धोपलब्धि। आगे अविरुद्धोपलब्धि के भेद बताते हैं अविरुद्धोपलब्धिर्विधौ षोढा व्याप्यकार्यकारणपूर्वोत्तरसहचरभेदात् ॥59॥ सूत्रार्थ- विधिरूप साध्य के रहने पर अविरुद्ध उपलब्धिरूप हेतु के छह भेद होते हैं- व्याप्यअविरुद्धोपलब्धिहेतु, कार्यअविरुद्धोपलब्धिहेतु, कारणअविरुद्धोपलब्धिहेतु, पूर्वचरअविरुद्धउपलब्धिहेतु, उत्तरचरअविरुद्धउपलब्धिहेतु, सहचर अविरुद्धउपलब्धिहेतु। 103. साध्य के साथ जो अविरुद्धपने से उपलब्ध हो ऐसे हेतु के विधिरूप साध्य के रहने पर ये छह भेद सम्भावित हैं। 104. बौद्ध- किसी प्रमाण से कार्य कारणभाव सिद्ध नहीं होता अतः कार्य हेतु कारणरूप साध्य का गमक या कारण हेतु कार्यरूप साध्य का गमक किस प्रकार हो सकता है? जैन- इस मन्तव्य को अभी ऐसे ही रहने दीजिए आगे प्रमाण के विषय का वर्णन करने वाले परिच्छेद में सम्बन्ध की परीक्षा करते हुए कार्यकारण आदि सम्बन्ध की परीक्षा करते हुए कार्यकारण आदि प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 141
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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