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________________ 3/56 यथा चानुमानं द्विप्रकारं तथा हेतुरपि द्विप्रकारो भवतीति दर्शनार्थं स हेतु₹धेत्याह इसका अर्थ यह है कि जिस पुरुष को धूम और अग्निरूप साध्य साधन का ज्ञान है वह कहीं पर्वतादि में धूम को देखकर समीपस्थ पुरुष को कहता है कि "यहाँ पर अग्नि अवश्य है क्योंकि धूम दिखायी दे रहा है" इस साध्य साधन के वचन को सुनकर उसके निमित्त से उक्त पुरुष को जो साध्यसाधन का ज्ञान होता है वह वास्तविक परार्थानुमान है और उक्त ज्ञाता पुरुष के जो साध्यसाधन के वचन मात्र है वह औपचारिक परार्थानुमान है। पर की अपेक्षा बिना किये जो पदार्थों को प्रकाशित करता है ऐसा ज्ञान ही मुख्यरूप से प्रमाण है इस प्रकार पहले प्रतिपादन कर चुके हैं (प्रथम भाग के कारकसाकल्यवाद सन्निकर्षवाद आदि प्रकरणों में) अतः वचनात्मक अनुमान उपचार मात्र से परार्थानुमान कहला सकता है वास्तविक रूप से नहीं- ऐसा निश्चय हुआ। कहने का तात्पर्य यह है कि नैयायिक आदि परवादी साध्य साधन को कहने वाले वचन को ही परार्थानुमान मानते हैं, उनके यहाँ सर्वत्र ज्ञान के कारण को ही प्रमाण माना जाता है जैसे इन्द्रिय और पदार्थ का सन्निकर्ष अर्थात् योग्य समीप स्थान में होना ज्ञान का कारण है सो इस सन्निकर्ष को प्रमाण माना किन्तु पदार्थों को जानने की सामर्थ्य तो ज्ञान में है अत: ज्ञान ही प्रमाण है, बाध्यसन्निकर्षादि तो व्यभिचारी कारण है अर्थात् इससे ज्ञान हो, नहीं भी हो, तथा दिव्य ज्ञानी के तो इन कारणों के बिना ही ज्ञान उत्पन्न होता है अतः प्रमाण तो ज्ञान ही है, वचन को प्रमाण मानना, सन्निकर्ष को प्रमाण मानना यह सब मान्यता सदोष है, इसका विवेचन प्रथम भाग में भलीभांति हो चुका है। इस प्रकार यह निश्चित हो जाता है कि साध्य साधन के वचन परार्थानुमान का निमित्त होने से उपचार से उसे परार्थानुमान कह देते हैं, वह कोई वस्तुभूत अनुमान प्रमाण नहीं है। ऐसा भावार्थ समझना चाहिए। अनुमान के समान हेतु भी दो प्रकार का होता है ऐसा कहते प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 139
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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