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________________ 3/56 यत्साध्यविज्ञानं तत्परार्थानुमानम्। 99. ननु वचनात्मकं परार्थानुमानं प्रसिद्धम्, तच्चोक्तप्रकार साध्यविज्ञानं परार्थानुमानमिति वर्णयता कथं सङ्गहीतमित्याह तद्वचनमपि तद्धेतुत्वात् ॥56॥ 100. तद्वचनमपि तदर्थपरामर्शिवचनमपि तद्धेतुत्वात् ज्ञानलक्षण मुख्यानुमानहेतुत्वादुपचारेण परार्थानुमानमुच्यते। उपचारनिमित्तं चास्य प्रतिपादकप्रतिपाद्यापेक्षयानुमानकार्यकारणत्वम् तत्प्रतिपादकज्ञानलक्षणानुमान(नं) हेतुः कारणं यस्य तद्वचनस्य, तस्य वा प्रतिपाद्यज्ञानलक्षणानुमानस्य हेतुः कारणम्, तद्भावस्तद्धेतुत्वम्, तस्मादिति। मुख्यरूपतया तु ज्ञानमेव प्रमाणं परनिरपेक्षतयाऽर्थप्रकाशकत्वादिति प्राक्प्रतिपादितम्। ज्ञान होता है वह परार्थानुमान है। 99. शंका- परार्थानुमान वचनात्मक होता है, साध्य के ज्ञान को परार्थानुमान कहते हैं ऐसा वर्णन करते हुए उक्त वचनात्मक परार्थानुमान का संग्रह क्यों नहीं किया है? इस शंका का समाधान करते हैंतद्वचनमपि तद्धेतुत्वात् ॥56॥ सूत्रार्थ- स्वार्थानुमान का प्रतिपादक वचन भी कथंचित् परार्थानुमान कहलाता है, क्योंकि वह वचन परार्थानुमान ज्ञान में कारण हैं। 100. साध्य साधनभूत अर्थ के द्योतक वचन भी ज्ञान लक्षणभूत मुख्य अनुमान का निमित्त होने के कारण उपचार से परार्थानुमान कहलाता है। प्रतिपादक पुरुष और प्रतिपाद्य शिष्यादि की अपेक्षा से इस अनुमान में कार्य कारणभाव होने से यह उपचार निमित्तक है। साध्यसाधन वचन का प्रतिपादन करने वाले पुरुष का ज्ञान लक्षणभूत अनुमान है कारण जिसका उसको कहते हैं "तद् वचन"। तथा प्रतिपाद्य शिष्यादि पुरुष के ज्ञान लक्षणरूप अनुमान का जो कारण है उसे “तद्धेतुत्व" कहते हैं यह "तद् वचनं" और "तद्धेतुत्वात्" शब्द की निरुक्ति है। 138:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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