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________________ 3/52-55 तच्चानुमानं ह्यवयवं त्र्यवयवं पञ्चावयवं वा द्विप्रकारं भवतीति दर्शयन् तदनुमानं द्वेधा ॥52॥ इत्याह। कुतस्तद् द्वेधेति चेत्? स्वार्थपरार्थभेदात् ॥53॥ तत्रस्वार्थमुक्तलक्षणम् ॥54॥ स्वार्थमनुमानं साधनात्साध्यविज्ञानमित्युक्तलक्षणम्। किं पुनः परार्थानुमानमित्याह परार्थमित्यादिपरार्थं तु तदर्थपरामर्शिवचनाज्जातम् ॥55॥ तस्य स्वार्थानुमानस्यार्थः साध्यसाधने तत्परामर्शिवचनाज्जातं इस प्रकार दो अवयव वाला या तीन अवयव वाला अथवा पाँच अवयव वाला वह अनुमान दो प्रकार का होता है ऐसा दिखलाते हैं तदनुमानं द्वेधा 1520 स्वार्थपरार्थभेदात् ॥53॥ स्वार्थमुक्तलक्षणम् ॥54॥ सूत्रार्थ- वह अनुमान दो प्रकार का है, स्वार्थानुमान और परार्थानुमान। साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं ऐसा पहले बताया है वही स्वार्थानुमान कहलाता है। परार्थानुमान कौन सा है बतलाते हुए कहते हैंपरार्थं तु तदर्थपरामर्शिवचनाज्जातम् ॥55॥ सत्रार्थ- स्वार्थानुमान के अर्थ का परामर्श करने वाले वचन से जो उत्पन्न होता है उसे परार्थानुमान कहते हैं। स्वार्थानुमान के अर्थभूत साध्यसाधन को प्रकाशित करने वाले वचन को सुनकर जो साध्य का प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 137
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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