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________________ यथा तस्मिन्नेव साध्ये महाहृदादिः । अथ को नाम उपनयो निगमनं वा किमित्याह 3/50-51 हेतोरुपसंहार उपनयः ॥50॥ प्रतिज्ञायास्तु निगमनम् ॥51॥ 98. प्रतिज्ञायास्तूपसंहारो निगमनम्। उपनयो हि साध्याविनाभावित्वेन विशिष्टे साध्यधर्मिण्युपनीयते येनोपदर्श्यते हेतुः सोभिधीयते। निगमनं तु प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयाः साध्यलक्षणैकार्थतया निगम्यन्ते सम्बद्ध्यन्ते येन तदिति । सूत्रार्थ - जहाँ पर साध्य के अभाव में साधन का अभाव दिखलाया जाता है उसे व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं। जैसे उसी अग्निरूप साध्य करने में महाहद (सरोवर या जलाशय) का दृष्टान्त दिया जाता है। उपनय किसे कहते हैं और निगमन किसे कहते हैं? इसे आगे के सूत्रों में बतलाते हैं हेतोरुपसंहार उपनयः 11501 प्रतिज्ञायास्तु निगमनम् ॥51॥ सूत्रार्थ- पक्ष में हेतु का उपसंहार दुहराना उपनय है और प्रतिज्ञा को दुहराना निगमन है। 98. प्रतिज्ञा का उपसंहार निगमन है साध्य के साथ जिसका अविनाभाव है ऐसे हेतु का विशिष्ट साध्य धर्मी में जिसके द्वारा प्रदर्शन किया जाता है उसको उपनय कहते हैं “उपनीयते हेतुः येन स उपनयः” इस प्रकार उपनय शब्द की निरुक्ति है । प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण और उपनय इनका साध्य लक्षणभूत एक है अर्थ जिसका इस प्रकार जिसके द्वारा संबद्ध किया जाता है उसे निगमन कहते हैं। “ निगम्यते - संबद्धयंते प्रतिज्ञादयः येन तद् निगमनम् ” इस तरह निगमन शब्द की निरुक्ति है। 136:: प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार:
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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