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________________ 3/47-49 तत्र तयुत्पादनार्थं दृष्टान्तस्य स्वरूपं प्रकारं चोपदर्शयतिदृष्टान्तो द्वेधाऽन्वयव्यतिरेकभेदात् ॥47॥ दृष्टो हि विधिनिषेधरूपतया वादिप्रतिवादिभ्यामविप्रतिपत्त्या प्रतिपन्नोऽन्तः साध्यसाधनधर्मो यत्रासौ दृष्टान्त इति व्युत्पत्तेः। अथ कोऽन्वयदृष्टान्तः कश्च व्यतिरेकदृष्टान्त इति चेत्साध्यव्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोन्वयदृष्टान्तः ॥48॥ यथाग्नौ साध्ये महानसादिः। साध्याभावे साधनव्यतिरेको यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः॥49॥ अब बालबुद्धि को व्युत्पन्न कराने के लिए दृष्टान्त का स्वरूप तथा प्रकार कहते हैं दृष्टान्तो द्वेधाऽन्वयव्यतिरेकभेदात् ॥47॥ सूत्रार्थ- दृष्टान्त के दो भेद हैं अन्वय दृष्टान्त और व्यतिरेक दृष्टान्त। वादी और प्रतिवादी द्वारा बिना विवाद के विधि प्रतिषेध रूप में देखा गया है साध्य साधन धर्म जहाँ पर उसे "दृष्टान्त" कहते हैं। दृष्टान्त शब्द का व्युत्पत्ति अर्थ है- दृष्टौ अन्तौ साध्यसाधन-धर्मो यस्मिन् स दृष्टान्तः। अन्वय दृष्टान्त कौन है और व्यतिरेक दृष्टान्त कौन है? इस प्रकार प्रश्न होने पर कहते हैंसाध्यव्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वयदृष्टान्तः ॥48॥ सूत्रार्थ- जहाँ पर साध्य से व्याप्त साधन को दिखाया जाता है उसे अन्वय दृष्टान्त कहते हैं। जैसे अग्नि को साध्य करने पर रसोईघर का दृष्टान्त देते हैं। साध्याभावे साधनाभावः यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः 149॥ प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 135
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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