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________________ 3/43-44 कुतोऽन्यथोपनयनिगमने? 143॥ परं केवलमभिधीयमानं साध्यसाधने साध्यधर्मिणि सन्देहयति सन्देहवती करोति। कुतोऽन्यथोपनयनिगमने? मा भूदृष्टान्तस्यानुमान प्रत्यङ्गत्वमुपनयनिगमनयोस्तु स्यादित्याशङ्कापनोदार्थमाह न च ते तदड़े साध्यधर्मिणि हेतुसाध्ययोर्वचनादेवाऽसंशयात् ॥44॥ न च ते तदने साध्यधर्मिणि हेतुसाध्ययोर्वचनादेव हेतुसाध्यप्रतिपत्ती संशयाभावात्। तथापि दृष्टान्तादेरनुमानावयवत्वे हेतुरूपत्वे वा कुतोऽन्यथोपनयनिगमने ॥3॥ सूत्रार्थ- तथा केवल उदाहरण को कहने से साध्यधर्मी में साध्यसाधन के बारे में संशय उत्पन्न होता है। यदि ऐसा नहीं होता तो उदाहरण के अनंतर ही उपनय और निगमन के प्रयोग की आवश्यकता किस तरह होती? अभिप्राय यह कि बाल प्रयोगरूप अनुमान में पक्ष हेतु और उदाहरण के अनन्तर तत्काल ही उपनय और निगमन का प्रयोग किया जाता है, केवल उदाहरण का प्रयोग करे और आगे के उपनयादि को न कहे तो साध्यसाधन सन्देहास्पद हो जाते हैं (अर्थात् ये धूम तथा अग्निरूप साध्यसाधन महानस के समान है या अन्य है? इस प्रकार केवल उदाहरण के प्रयोग से सन्देह बना रहता है।) दृष्टान्त अनुमान का भले ही न हो किन्तु उपनय और निगमन तो उसके अंग होते हैं? इस प्रकार की आशंका होने पर उसको दूर करते न च ते तदंगे साध्यधर्मिणि हेतु साध्ययोर्वचनादेवाऽसंशयात् ॥44॥ सूत्रार्थ- उपनय और निगमन भी अनुमान के अंग नहीं हैं क्योंकि साध्यधर्मी में साध्य और हेतु का कथन करने से ही 132:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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