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________________ 3/41-42 94. किञ्चं, वादिप्रतिवादिनोर्यत्र बुद्धिसाम्यं स दृष्टान्तो भवति प्रतिनियतव्यक्तिरूपः, यथाऽग्नौ साध्ये महानसादिः। व्यक्तिरूपं च निदर्शनं कथं तदविनाभावनिश्चयार्थं स्यात्? प्रतिनियतव्यक्तौ तन्निश्चयस्य कर्तुमशक्तेः। अनियतदेशकालाकाराधारतया सामान्येन तु व्याप्तिः। कथमन्यथान्यत्र साधनं साध्यं साधयेत्? तत्रापि दृष्टान्तेपि तस्यां व्याप्तौ विप्रतिपत्तौ सत्यां दृष्टान्तान्तरान्वेषणेऽनवस्थानं स्यात्। नापि व्याप्तिस्मरणार्थं तथाविधहेतुप्रयोगादेव तत्स्मृतेः ॥41॥ नापि व्याप्तिस्मरणार्थं दृष्टान्तोपादानं तथाविधस्य प्रतिपन्नाविनाभावस्य हेतोः प्रयोगादेव तत्स्मृतेः। एवं चाप्रयोजनं तदुदाहरणम्। तत्परमभिधीयमानं साध्यधर्मिणि साध्यसाधने सन्देहयति ॥42॥ 94. जहाँ वादी- प्रतिवादी दोनों के बुद्धि का साम्य हो वह दृष्टान्त कहलाता है, यह दृष्टान्त प्रतिनियत व्यक्तिरूप हुआ करता है, जैसे अग्निरूप साध्य में महानस का दृष्टान्त है। यह व्यक्तिरूप उदाहरण साध्यसाधन के अविनाभाव का निश्चय किस प्रकार करा सकता है? प्रतिनियत व्यक्ति में उसके निश्चय को करना तो अशक्य ही है। इसका भी कारण यह है कि अनियत देश, अनियत काल एवं अनियत आकार के आधार रूप से सामान्यस्वरूप व्याप्ति होती है, उसका प्रतिनियतव्यक्ति में निश्चय होना कथमपि सम्भव नहीं है। यदि ऐसा नहीं होता तो अन्यत्र स्थान पर हेतु स्वसाध्य को कैसे सिद्ध करता? तथा दृष्टान्त में भी व्याप्ति के विषय में विवाद हो जाय तो अन्य दृष्टान्त की खोज करनी पड़ेगी फिर उससे अनवस्था आयेगी। नापि व्याप्तिस्मरणार्थं तथाविधहेतुप्रयोगादेव तत्स्मृतेः ॥41॥ सूत्रार्थ- व्याप्ति का स्मरण कराने के लिए भी उदाहरण की जरूरत नहीं, उसका स्मरण तो तथाविध हेतु के प्रयोग से ही हो जाया करता है। व्याप्ति स्मृति के लिये दृष्टान्त का ग्रहण भी व्यर्थ है, क्योंकि जिसका साध्याविनाभाव ज्ञात है ऐसे हेतु के प्रयोग से ही व्याप्ति स्मरण हो जाता है। इस प्रकार उदाहरण प्रयोजनभूत नहीं है, ऐसा सिद्ध हुआ। तत् परमभिधीयमानं साध्यधर्मिणि साध्यसाधने संदेहयति ॥42॥ प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 131
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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