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________________ 3/40 सिद्धयति, ‘स श्यामस्तत्पुत्रत्वादितरतत्पुत्रवत्' इत्यत्र तदाभासेपि तत्सम्भवात्। 93. ननु साकल्येन साध्यनिवृत्तौ साधन निवृत्तेरत्रासम्भवात्परत्र गौरेपि तत्पुत्रे तत्पुत्रत्वस्य भावान्न व्याप्तिः तर्हि साकल्येन साध्यनिवृत्ती साधननिवृत्तिनिश्चयरूपाद्वाधकादेव व्याप्तिप्रसिद्धेरलं दृष्टान्तकल्पनया । व्यक्तिरूपं च निदर्शनं सामान्येन तु व्याप्तिः तत्रापि तद्विप्रतिपत्तावनवस्थानं स्यात् दृष्टान्तान्तरापेक्षणात् ॥40॥ निर्णय तो विपक्ष में बाधक प्रमाण से ही हेतु का अविनाभाव सिद्ध होता है। हेतु के साध्याविनाभाव की सिद्धि केवल सपक्षसात्त्व से नहीं होती, क्योंकि सपक्षसत्त्व तो हेत्वाभास में भी सम्भव है, जैसे " वह पुत्र काला है, क्योंकि उसका पुत्र है, जिस तरह उसके अन्य पुत्र भी काले हैं" इस प्रकार के तत्पुत्रत्वादि हेत्वाभासों में सपक्ष सत्त्व रहता है किन्तु उससे साध्य के साथ व्याप्ति सिद्ध नहीं होती। 93. शंका- उक्त अनुमान में साकल्यपने से साध्य के निवृत्त होने पर साधन की निवृत्ति होना असम्भव है, क्योंकि उसके अन्य गोरे पुत्र में भी तत्पुत्रत्व सम्भावित है अतः तत्पुत्रत्व हेतु की स्वसाध्य ( काला होना) के साथ व्याप्ति सिद्ध नहीं होती ? समाधान- तो फिर साकल्यपने से साध्य के निवृत्त होने पर साधन की निवृत्ति होती है ऐसा निश्चय कराने वाले बाधक प्रमाण से ही व्याप्ति की सिद्धि हुई, दृष्टान्त की कल्पना तो व्यर्थ ही है। व्यक्तिरूपं च निदर्शनं सामान्येन तु व्याप्तिस्तत्रापि तद् विप्रतिपत्तावनवस्थानं स्यात् दृष्टान्तांतरापेक्षणात् ॥40॥ सूत्रार्थ- दूसरी बात यह भी है कि दृष्टान्त किसी विशेष व्यक्तिरूप मात्र होता है किन्तु व्याप्ति सामान्यरूप होती है अतः दृष्टान्त में भी यदि साध्यसाधन के अविनाभाव सम्बन्ध में विवाद खड़ा हो जाय तो अनवस्था दोष आयेगा क्योंकि उक्त विवाद स्थान में पुनः दुष्टान्त की आवश्यकता पड़ेगी तथा उसमें विवाद होने पर तीसरे दृष्टान्त की आवश्यकता होगी। 130:: प्रमेयकमलमार्त्तण्डसारः "
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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