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गम्यमानस्यापि हेत्वादेर्मन्दमतिप्रतिपत्त्यर्थ वचने तदर्थमेव प्रतिज्ञावचनमप्यस्तु विशेषाभावात्। ततः साध्यप्रतिपत्तिमिच्छता हेतुप्रयोगवत्पक्षप्रयोगोप्यभ्युपगन्तव्यः। तवयस्यैवानुमानाङ्गत्वात्, इत्याह
एतद्वयमेवानुमानाङ्गम्, नोदाहरणम् ॥37॥
90. ननु पक्षहेतुदृष्टान्तोपनयनिगमनान्यवयवा:13 इत्यभिधानाद् दृष्टान्तादेरप्यनुमानाङ्गत्वसम्भवादेतद्वयमेवाङ्गमित्ययुक्तमुक्तम्। प्रतिज्ञा ह्यागमः। हेतुरनुमानम्, प्रतिज्ञातार्थस्य तेनानुमीयमानत्वात्। उदाहरणं प्रत्यक्षम्, "वादिप्रतिवादिनोर्यत्र बुद्धिसाम्यं तदुदाहरणम्" इति वचनात्। उपनय उपमानम्, दृष्टान्तधर्मिसाध्यधर्मिणोः सादृश्यात्, “प्रसिद्धसाधर्म्यात्साध्यसाधनमुपमानम्।।"
बौद्ध- गम्यमान (ज्ञात हुए) प्रतिज्ञा के विषय में ही हेतु आदि प्रवृत्त होते हैं।
जैन- तो वैसे ही गम्यमान हेतु आदि का समर्थन करना चाहिए।
बौद्ध- मंदमति को समझाने के लिए गम्यमान हेतु आदि का भी कथन करना पड़ता है।
जैन- इसी प्रकार प्रतिज्ञा प्रयोग भी मन्दमति को समझाने के लिये करना पड़ता है। उभयत्र समान बात है, कोई विशेषता नहीं। अतः साध्य की प्रतिपत्ति को चाहने वाले पुरुष को हेतु प्रयोग के समान पक्ष प्रयोग भी स्वीकार करना चाहिये। यही दो अनुमान के अंग हैं ऐसा अग्रिम सूत्र में कहते हैं
एतद्वयमेवानुमानांग नोदाहरणम् ॥37॥
सूत्रार्थ- पक्ष और हेतु ये दो ही अनुमान के अंग हैं, उदाहरण अनुमान का अंग नहीं है।
90. नैयायिकादि परवादियों का कहना है कि पक्ष, हेतु, दृष्टान्त, उपनय, निगमन ये पाँच अनुमान के अंग हैं, इनमें उदाहरण को
न्यायसूत्र 1/1/32 14. न्यायसूत्र 1/1/6
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 127