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इत्यभिधानात्। सर्वेषामेकविषयत्वप्रदर्शनफलं निगमनमित्याशङ्कयोदाहरणस्य तावत्तदङ्गत्वं निराकुर्वन्नाह-नोदाहरणम्। अनुमानाङ्गमिति सम्बन्धः।
91. तद्धि कि साक्षात्साध्यप्रतिपत्त्यर्थमुपादीयते, हेतोः साध्याविनाभी अनुमान का अंग स्वीकार किया है अतः अनुमान के दो ही अंग मानना अयुक्त है।
पक्ष आदि अंगों का अर्थ इस प्रकार है- पक्ष अर्थात् प्रतिज्ञा आगम ज्ञान रूप होती है।
हेतु अनुमान रूप होता है, क्योंकि प्रतिज्ञात अर्थ अनुमान द्वारा अनुमेय (जानने योग्य) होता है।
प्रतिवादी (जो पहले अपना पक्ष स्थापित करता है उसे वादी कहते हैं और जो पक्ष का निराकरण करते हुए अपना दूसरा पक्ष (सिद्धांत) स्थापित करता है उसे प्रतिवादी कहते हैं) का बुद्धिसाम्य जहाँ पर हो उसे उदाहरण कहते हैं, अर्थात् दोनों का जो मान्य एवं ज्ञात हो उसे उदाहरण कहते हैं।
उपनय उपमा प्रमाणरूप होता है क्योंकि दृष्टान्त धर्मी और साध्य धर्मी का सादृश्य इसका विषय है, प्रसिद्ध साधर्म्य से साध्य को साधना उपमाज्ञान कहलाता है इस ज्ञानरूप उपनय होता है।
सभी प्रमाणों का एक विषय है ऐसा प्रदर्शन करना अर्थात् आगम अनुमानादि प्रमाण द्वारा प्रतिपादित पक्ष हेतु आदि का विषय एक अग्नि आदि साध्य को सिद्ध करना ही फल है ऐसा अन्त में दिखलाना निगमन नाम का अनुमान का अंग है।
___ इस प्रकार के नैयायिकादि के मंतव्य को लक्ष्य करके ही आचार्य माणिक्यनंदी ने "नोदाहरणम्" इस पद का प्रयोग किया है अर्थात् उदाहरण अनुमान का अंग नहीं है ऐसा प्रथम ही यहाँ पर कहकर उक्त मंतव्य का निराकरण किया है (आगे क्रमश: उपनय और निगमन का भी निराकरण करेंगे)।
91. नैयायिकों से जैन पूछते हैं कि उदाहरण का प्रयोग साक्षात्
128:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः