SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3/36 को वा त्रिधा हेतमक्त्वा समर्थयमानो न पक्षयति ?136।। 89. को वा प्रामाणिकः कार्यस्वभावानुपलम्भभेदेन पक्षधर्मत्वादिरूपत्रयभेदेन वा त्रिधा हेतुमुक्त्वाऽसिद्धत्वादिदोषपरिहारद्वारेण समर्थयमानो न पक्षयति? अपि तु पक्षं करोत्येव। न चाऽसमर्थितो हेतुः साध्यसिध्द्यङ्गमतिप्रसङ्गात्। ततः पक्षप्रयोगमनिच्छता हेतुमनुक्त्वैव तत्समर्थनं कर्त्तव्यम्। हेतोरवचने कस्य समर्थनमिति चेत्? पक्षस्याप्यनभिधाने क्व हेत्वादिः प्रवर्त्तताम्? गम्यमाने प्रतिज्ञाविषये एवेति चेत्; गम्यमानस्य हेत्वादेरपि समर्थनमस्तु। को वा त्रिधा हेतुमुक्त्वा समर्थयमानो न पक्षयति ॥36॥ सत्रार्थ- कौन ऐसा बुद्धिमान है कि जो तीन प्रकार के हेत् को कहकर पुनश्च उसका समर्थन करता हुआ भी पक्ष का प्रयोग न करे? [अपितु अवश्य ही करे]। 89. ऐसा कौन प्रामाणिक बुद्धिमान पुरुष है जो कार्य हेतु, स्वभाव हेतु एवं अनुपलम्भ हेतु इस प्रकार हेतु के तीन भेदों को कथन करता है अथवा पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व और विपक्ष व्यावृत्तिरूप हेतु के तीन स्वरूप का प्रतिपादन असिद्धादि दोषों का परिहार करने के लिए करता है वह पुरुष पक्ष का प्रयोग न करे? अर्थात् वह अवश्य ही पक्ष का प्रयोग करता है। असमर्थित हेतु साध्यसिद्धि का निमित्त होना भी असम्भव है, क्योंकि अतिप्रसंग है अर्थात् समर्थन रहित हेतु साध्यसिद्धि के प्रति निमित्त हो सकता है तो हेत्वाभास भी साध्यसिद्धि के प्रति निमित्त हो सकता है क्योंकि उसके स्वरूप का प्रतिपादनादिरूप से समर्थन करना तो आवश्यक नहीं रहा? फिर तो पक्षप्रयोग को नहीं चाहने वाले पुरुष को हेतु के बिना कहे ही उसका समर्थन करना चाहिए। बौद्ध- हेतु का वचन या प्रयोग किये बिना किसका समर्थन करे? जैन- तो पक्ष का वचन न कहने पर हेतु आदि भी कहाँ पर प्रवृत्त होंगे? 126:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy