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तत्प्रवृत्त्यभवानुषङ्गात्। आगमसामर्थ्यप्रभवत्वेनास्यात्र प्रवृत्तौ प्रकृतेप्यतस्तत्प्रवृत्तिरस्तु विशेषाभावात्।
प्रमाणोभयसिद्धे तु साध्यधर्मविशिष्टता ॥30॥ अग्निमानयं देश: परिणामी शब्द इति यथा ॥31॥
80. प्रमाणं प्रत्यक्षादिकम्, उभयं प्रमाणविकल्पौ, ताभ्यां सिद्धे पुनर्धर्मिणि साध्यधर्मेण विशिष्टता साध्या। यथाग्निमानयं देशः, परिणामी किसी प्रमाण से सिद्ध न हो उसे विकल्प सिद्ध रहता है।
शंकाकार ने प्रश्न किया कि इन्द्रिय से जाने हुए पदार्थ में मनोविकल्प हुआ करते हैं जो पदार्थ इन्द्रिय गम्य नहीं है उनमें विकल्प नहीं होते, अतः सर्वज्ञादि को विकल्प सिद्ध धर्मी मानना ठीक नहीं।
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य ने कहा कि जो इन्द्रिय गोचर नहीं है ऐसे पदार्थ आगम ज्ञान से विचार में आते हैं। यह सभी वादी परवादी किसी ना किसी रूप से ऐसे पदार्थ स्वीकार करते ही हैं। परमाणु को सभी ने इन्द्रिय के अगम्य माना है। योग धर्म अधर्म आत्मादि को अतीन्द्रिय मानते हैं, इन पदार्थों की सत्ता आगम से स्वयं ज्ञात करके पर के लिये अनुमान द्वारा समझायी जाती है। सर्वज्ञ का विषय भी आगमगम्य है, उनको आगम के बल से निश्चित करके जो परवादी उसकी सत्ता नहीं मानते उनको अनुमान से सिद्ध करके बतलाते हैं।
प्रमाणोभयसिद्धे तु साध्य धर्म विशिष्टता ॥30॥ अग्निमानयं देशः परिणामी शब्द इति यथा ॥31॥
सूत्रार्थ- प्रमाण धर्मी के रहते हुए एवं उभयसिद्ध धर्मी के रहते हुए साध्यधर्म विशिष्टता साध्य होती है। जैसे- यह प्रदेश अग्नियुक्त है। यह प्रत्यक्षप्रमाण सिद्ध धर्मी का उदाहरण है। शब्द परिणामी है। यह उभय सिद्ध धर्मी का उदाहरण है।
80. प्रत्यक्षादि प्रमाण है, जिसमें प्रमाण और विकल्प से सिद्धि हो उसे उभयसिद्ध धर्मी कहते हैं। इन धर्मियों के रहते हुए साध्य धर्म से विशिष्टता साध्य होती है। यथा- यह देश अग्नियुक्त है और शब्द 120:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः