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________________ 3/30-31 शब्द इति। देशो हि धर्मित्वेनोपात्तोऽध्यक्षप्रमाणत एव प्रसिद्धः, शब्दस्तूभाभ्याम्। न खलु देशकालान्तरिते ध्वनौ प्रत्यक्षं प्रवर्त्तते, श्रूयमाणमात्र एवास्य प्रवृत्तिप्रतीतेः। विकल्पस्य त्वऽनियतविषयतया तत्र प्रवृत्तिरविरुद्धैव। 81. ननु चैवं देशस्याप्यग्निमत्त्वे साध्ये कथं प्रत्यक्षसिद्धता? तत्र हि दृश्यमानभागस्याग्निमत्त्वसाधने प्रत्यक्षबाधनं साधनवैफल्यं वा, तत्र साध्योपलब्धः। अदृश्यमानभागस्य तु तत्साधने कुतस्तत्प्रत्यक्षतेति? 82. तदप्यसमीचीनम्; अवयविद्रव्यापेक्षया पर्वतादे: सांव्यवहारिकप्रत्यक्षप्रसिद्धताभिधानात्। अतिसूक्ष्मेक्षिकापर्यालोचने न किञ्चित्प्रत्यक्षं परिणामी है ये क्रमशः प्रमाणसिद्ध और उभयसिद्ध धर्मी के उदाहरण हैं। अग्नियुक्त प्रदेश प्रत्यक्ष प्रमाण से ही सिद्ध है अतः यह धर्मी प्रमाण सिद्ध कहलाया। शब्द उभय रूप से सिद्ध है, क्योंकि देश और काल से अन्तरित हुए शब्द में प्रत्यक्ष प्रमाण प्रवृत्त नहीं होता केवल श्रूयमाण शब्द में ही इसकी प्रवृत्ति होती है। अनियत विषय वाला होने से विकल्प की प्रवृत्ति शब्द में होना अविरुद्ध ही है। 81. शंका- इस प्रकार से शब्द को उभयसिद्ध धर्मी माने अर्थात् वर्तमान का शब्द प्रमाण सिद्ध और देश एवं काल से अन्तरित शब्द विकल्प सिद्ध माने तो अग्निमत्व साध्य में प्रदेशरूप धर्मी प्रत्यक्ष सिद्ध कैसे हो सकता है? क्योंकि दृश्यमान प्रदेश के भाग को अग्नियुक्त सिद्ध करते हैं तो प्रत्यक्ष बाधा आयेगी या हेतु विफल ठहरेगा अर्थात् दृश्यमान प्रदेश भाग में यदि अग्नि प्रत्यक्ष से दिखायी दे रही हो तो उसको हेतु द्वारा सिद्ध करना व्यर्थ है क्योंकि साध्य उपलब्ध हो चुका। और यदि उक्त भाग में अग्नि प्रत्यक्ष नहीं है तो वहाँ हेतु द्वारा उसका अस्तित्व सिद्ध प्रत्यक्ष बाधित है। यदि उक्त प्रदेश के अदृश्यमान भाग में अग्निमत्व को सिद्ध करते हैं तो उस भाग को प्रत्यक्षसिद्ध धर्मी किस प्रकार कह सकते हैं? 82. समाधान- यह कथन असम्यक् है, अवयवी द्रव्य की अपेक्षा से पर्वतादि प्रदेश सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष से प्रसिद्ध माने गये हैं। यदि अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टि से विचार करे तो कोई भी पदार्थ प्रत्यक्ष नहीं प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 121
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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