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स च पक्षत्वेनाभिप्रेतः प्रसिद्धो धर्मी 1271
77. तत्प्रसिद्धिश्च क्वचिद्विकल्पतः क्वचित्प्रत्यक्षादित: क्वचिच्चोभयत इति प्रदर्शनार्थम् -' प्रत्यक्षसिद्धस्यैव धर्मित्वम्' इत्येकान्तनिराकरणार्थं च विकल्पसिद्ध इत्याचाह
विकल्पसिद्धे तस्मिन् सत्तेतरे साध्ये | 2811 अस्ति सर्वज्ञः नास्ति खरविषाणमिति ॥29॥
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78. विकल्पेन सिद्धे तस्मिन्धर्मिणि सत्तेतरे साध्ये हेतुसामर्थ्यतः । यथा अस्ति सर्वज्ञः सुनिश्चितासम्भवद्बाधकप्रमाणत्वात् नास्ति खरविषाणं
में कोई दोष नहीं है।
पक्ष रूप से स्वीकार किया
प्रसिद्धो धर्मी 1271
सूत्रार्थ धर्मी प्रसिद्ध होता है।
77. उसकी प्रसिद्धि किसी अनुमान में विकल्प से होती है, किसी में प्रत्यक्षादि से होती है और किसी में उभयरूप से होती है ऐसा समझाने के लिये तथा "धर्मी प्रत्यक्ष सिद्ध ही होता है" ऐसे एकान्त का निराकरण करने के लिये आगे का सूत्र प्रसूत होता है।
विकल्पसिद्धे तस्मिन् सत्तेतरे साध्ये ||28|| अस्ति सर्वज्ञः नास्ति खरविषाणमिति ॥ 291
सूत्रार्थ- जब धर्मी विकल्प सिद्ध होता है तब साध्य सत्ता और असत्ता (अस्तित्व और नास्तित्व) दो रूप हो सकता है अर्थात् सत्तारूप भी होता है और कहीं असत्तारूप भी। जैसे “सर्वज्ञ" है ऐसे प्रतिज्ञारूप वाक्य में सत्ता साध्य है, तथा “खर विषाण ( गधे के सींग) नहीं हैं"ऐसे प्रतिज्ञा वाक्य में असत्ता साध्य है।
78. धर्मी के विकल्प से सिद्ध रहने पर (अर्थात् संवाद और असंवादरूप से अनिश्चित रहने पर ) सत्ता और असत्ता को सिद्ध करने 118 :: प्रमेयकमलमार्त्तण्डसारः