SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तथाभूतस्यैवार्थस्य साधने साधनसामर्थ्यात् न पुनस्तद्विपरीतस्य तत्र तद्वैफल्यात्। इष्टाऽबाधितविशेषणद्वयस्यानिष्टेत्यादिना फलं दर्शयति अनिष्टाध्यक्षादिबाधितयोः साध्यत्वं मा भूदितीष्टाबाधितवचनम् ॥22॥ 3/22 72. अनिष्टं हि सर्वथा नित्यत्वं शब्दे जैनस्य। अश्रावणत्वं तु प्रत्यक्ष- बाधितम् आदिशब्देनानुमानादिबाधितपक्षपरिग्रहः तत्रानुमानबाधितः यथा-नित्यः शब्द इति । आगमबाधितः यथा- प्रेत्याऽसुखप्रदो धर्म इति । स्ववचनबाधितः यथा-माता मे बन्ध्येति । लोकबाधितः यथा - शुचि नरशिर:कपालमिति। तयोरनिष्टाध्यक्षादिबाधितयोः साध्यत्वं मा भूदितीष्टाबाधितवचनम्। ही हेतु की सामर्थ्य होती है इनसे विपरीत पदार्थों की सिद्धि करने में नहीं। क्योंकि असंदिग्ध आदि पदार्थों के लिए अनुमान की आवश्यकता नहीं रहती वे तो सिद्ध ही रहते हैं। अब साध्य के इष्ट और अबाधित इन दो विशेषणों की सफलता दिखलाते हैं अनिष्टाध्यक्षादिबाधितयोः साध्यत्वं माभूदितीष्टाबाधितवचनम् ॥22॥ सूत्रार्थ - अनिष्ट पदार्थ एवं प्रत्यक्षादि प्रमाण से बाधित पदार्थ साध्यरूप न हो एतदर्थ "इष्ट" और " अबाधित" ये दो विशेषण साध्य पद के साथ प्रयुक्त किये हैं। 72. जैसे शब्द में सर्वथा नित्यपना सिद्ध करना जैन के लिए अनिष्ट है। तथा शब्द में अश्रावणत्व (कर्ण गोचर न होना) मानना प्रत्यक्ष से बाधित है। सूत्रोक्त " आदि" शब्द द्वारा अनुमान आदि प्रमाण से बाधित पक्ष वाले साध्य का भी ग्रहण हो जाता है, अर्थात् जो साध्य अनुमानादि से बाध्य हो उसको भी साध्य नहीं कहते हैं। जैसे " शब्द नित्य है" ऐसा साध्य बनाना अनुमान बाधित है। “धर्म परलोक में दुःखदायक है" ऐसा कहना आगम बाधित है। जो साध्य अपने ही वचन से बाधित हो उसे स्ववचन बाधित 114 :: प्रमेयकमलमार्त्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy