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70. सहचारिणो रूपरसादिलक्षणयोप्प्यव्यापकयोश्च शिंशपात्ववृक्षत्वादिस्वभावयोः सहभावः प्रतिपत्तव्यः। पूर्वोत्तरचारिणोः कृतिकाशकटोदयादिस्वरूपयोः कार्यकारणयोश्चाग्निधूमादिस्वरूपयोः क्रमभावः इति।
कुतोसौ प्रोक्तप्रकारोऽविनाभावो निर्णीयते इत्याहतर्कात्तन्निर्णयः ॥१॥ न पुनः प्रत्यक्षादेरित्युक्तं तर्कप्रामाण्यप्रसाधनप्रस्तावे। ननु साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानमित्युक्तम्। तत्र किं साध्यमित्याह
सूत्रार्थ- सहचारी रूप रसादि में और व्याप्य व्यापक पदार्थों में सहभाव अविनाभाव होता है। पूर्व और उत्तर कालभावी पदार्थों में तथा कार्य कारणों में क्रमभाव अविनाभाव होता है।
___70. रूप रसादि सहचारी कहलाते हैं, इनमें सहभाव पाया जाता है। इसी प्रकार सहभावनियम उस साधन और साध्य में भी होता है जो व्याप्य और व्यापक हैं। जैसे शिशपा (शीशम) और वृक्ष। शिशपा व्याप्य है और वृक्ष व्यापक है। जब हम शिंशपा को देखकर उसमें वृक्ष का अनुमान करते हैं तो यहाँ शिंशपा और वृक्ष में सहभाव नियम रहता है।
कृतिका नक्षत्र का उदय और रोहिणी नक्षत्र का उदय आदि पूर्वोत्तरचारी कहलाते हैं एवं धूम और अग्नि आदि कार्य कारण कहलाते हैं इनमें क्रमभाव पाया जाता है।
इस अविनाभाव का निर्णय किस प्रमाण से होता है? ऐसा प्रश्न होने पर उत्तर देते हैं
तर्कात् तन्निर्णयः 19॥ सूत्रार्थ- अविनाभाव सम्बन्ध का निश्चय तर्क प्रमाण से होता
प्रत्यक्षादि प्रमाण से अविनाभाव का निर्णय नहीं होता ऐसा पहले तर्क ज्ञान को प्रमाणता सिद्ध करते समय कह आये हैं।
शंका- साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं ऐसा प्रतिपादन तो हो चुका किन्तु साध्य किसे कहना यह नहीं बताया
है,
112:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः