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________________ 3/16-18 अविनाभावादीनां लक्षणविमर्शाः 69. ननु चास्तु प्रधानं लक्षणमविनाभावो हेतोः। तत्स्वरूपं तु निरूप्यतामप्रसिद्धस्वरूपस्य लक्षणत्वायोगादित्याशङ्कय सहक्रमेत्यादिना तत्स्वरूपं निरूपयति सहक्रमभावनियमोऽविनाभावः ॥16॥ सहभावनियमः क्रमभावनियमश्चाविनाभावः प्रतिपत्तव्यः। कयोः पुनः सहभावः कयोश्च क्रमभावो यन्नियमोऽविनाभावः स्यादित्याह सहचारिणोः व्याप्यव्यापकयोश्च सहभावः ॥17॥ पूर्वोत्तरचारिणोः कार्यकारणयोश्च क्रमभावः ॥18॥ अविनाभावादि लक्षण विमर्श 69. शंका- हेतु का प्रधान लक्षण अविनाभाव है यह बात तो ठीक है किन्तु अविनाभाव के स्वरूप का निरूपण भी करना होगा, क्योंकि अप्रसिद्ध स्वरूप वाली वस्तु किसी का लक्षण नहीं बन सकती? समाधान- अब इसी शंका को लक्ष्य करके अविनाभाव का स्वरूप बताते हैं सहक्रमभावनियमोऽविनाभावः ॥16॥ सूत्रार्थ- सहभाव नियम और क्रमभाव नियम- ऐसे अविनाभाव के दो भेद हैं। युगपत् रहने का नियम सहभाव अविनाभाव है और क्रमश: रहने का नियम क्रमभाव अविनाभाव है। ये दोनों अविनाभाव के लक्षण या स्वरूप समझने चाहिए। किन दो पदार्थों में सहभाव होता है और किन दो पदार्थों में क्रमभाव होता है ऐसा अविनाभाव नियम के विषय में प्रश्न होने पर कहते हैं सहचारिणोः व्याप्यव्यापकयोश्च सहभावः ॥17॥ पूर्वोत्तरचारिणोः कार्यकारणयोश्च क्रमभावः 8| प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 111
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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