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________________ 3/15 61. द्वितीयविकल्पे तु कुतो वैशिष्ट्यं त्रैरूप्यस्यान्यत्रान्यथानुपपन्नत्वनियमनिश्चयात्, इति स एवास्य लक्षणमक्षूणं परीक्षादक्षरुपलक्ष्यते। तद्भावे पक्षधर्मत्वाद्यभावेपि 'उदेष्यति शकटं कृत्ति- कोदयात्' इत्यादेर्गमकत्वेन वक्ष्यमाणत्वात्, सपक्षे सत्त्वरहितस्य च श्रावणत्वादेः शब्दानित्यत्वे साध्ये गमकत्वप्रतीतेः। हेतोः पाञ्चरूप्यनिरासः 62. ननु त्रैरूप्यं हेतोर्लक्षणं मा भूत् 'पक्वान्येतानि फलान्येकशाखा 61. दूसरा विकल्प-विशिष्ट त्रैरूप्य को हेतु का लक्षण बनाते हैं तो वह विशिष्ट त्रैरूप्य अन्यथानुपपत्ति के नियम के निश्चय को छोड़कर अन्य कुछ भी नहीं है, अर्थात् अन्यथानुपपन्नत्व नियम को ही विशिष्ट त्रैरूप्य कहते हैं इसलिए परीक्षाचतुर पुरुषों को उसी परिपूर्ण लक्षण को स्वीकार करना चाहिए। अन्यथानुपपन्नत्व रूप हेतु का लक्षण मौजूद हो तब पक्षधर्मत्व आदि लक्षण का अभाव होने पर भी हेतु साध्य का गमक [सिद्ध करने वाला] होता है, जैसे एक मुहूर्त्त बाद रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा, क्योंकि कृतिका नक्षत्र का उदय हो चुका है। इस अनुमान का कृतिका उदयत्व नामा हेतु पक्ष धर्मत्व आदि त्रैरूप्य से रहित है तो भी अन्यथानुपपन्नत्व [मुहूर्त बाद रोहिणी उदय का नहीं होना होगा तो अभी कृतिका का उदय भी नहीं होता] रूप लक्षण के होने से यह हेतु स्वसाध्य का गमक है, ऐसा आगे कहने वाले हैं। जिस हेतु का सपक्ष में सत्त्व नहीं है ऐसे श्रावणत्व आदि हेतु शब्द के अनित्य धर्म रूप साध्य को सिद्ध करते हुए भी प्रतीति में आ रहे हैं अतः सपक्ष सत्त्व आदि त्रैरूप्य को हेतु का लक्षण मानना असत् है। हेतु की पञ्चरूपता का खण्डन 62. यौग दार्शनिकों का कहना है कि बौद्धाभिमत हेतु का त्रैरूप्य लक्षण असिद्ध है यह बात ठीक ही है, ये फल पक्व [पके] हैं क्योंकि एक शाखा से उत्पन्न हुए हैं, जैसे उपयुक्त फल उसी एक 106:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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