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प्रभवत्वादुपयुक्तफलवत्' इत्यादौ 'मूल्यं देवदत्तस्तत्पुत्रत्वादितरतत्पुत्रवत्' इत्यादौ च तदाभासेपि तत्सम्भवात्।
63. पञ्चरूपत्वं तु तल्लक्षणं युक्तमेवानवद्यत्वात्, एकशाखाप्रभवत्वस्याबाधितविषयत्वासम्भवाद् आत्मताग्राहिप्रत्यक्षेणैव तद्विषयस्य शाखा प्रभव होने से पक्व थे, इत्यादि अनुमान में प्रयुक्त “एक शाखा प्रभवत्व" हेतु सपक्ष सत्वादि त्रैरूप्य से युक्त होते हुए भी हेत्वाभास है, तथा यह देवदत्त मूर्ख है, क्योंकि उसका पुत्र है, जैसे उसके अन्य पुत्र मूर्ख हैं। इत्यादि तत्पुत्रत्व हेतु भी त्रैरूप्य लक्षण के होते हुए भी हेत्वाभास स्वरूप है, अतः हेतु का त्रैरूप्य लक्षण सदोष है।
कहने का तात्पर्य यह है कि किसी मनुष्य ने वृक्ष के एक शाखा के कुछ फलों को खाकर अनुमान किया कि इस शाखा के सभी फल पके हैं, क्योंकि एक शाखा प्रभव है जैसे खाये हुए फल पके थे इत्यादि, इस एक शाखा प्रभवत्व नामा हेतु में पक्ष धर्म आदि त्रैरूप्य मौजूद है- उक्त शाखा के फल पके होना संभावित है अतः पक्षधर्मत्व, भुक्त फलों में पक्वता होने से सपक्ष सत्त्व एवं अन्य शाखा प्रभव फल में पक्वता का अभाव सम्भावित होने से विपक्ष व्यावृत्ति है तो भी यह हेतु साध्य का गमक नहीं हो सकता, क्योंकि उस शाखा के फलों को साक्षात् उपयुक्त करने पर दिखायी देता है कि कुछ फल अपक्व भी हैं। इसी प्रकार "यह देवदत्त मूर्ख है क्योंकि उस व्यक्ति का पुत्र है जैसे कि उसका अन्य पुत्र मूर्ख है," इस अनुमान का तत्पुत्रत्व हेतु भी त्रैरूप्य लक्षण रहते हुए भी सदोष है- साध्य का गमक नहीं है, क्योंकि उस व्यक्ति का पुत्र होने मात्र से देवदत्त की मूर्खता सिद्ध नहीं होती। यह सभी जानते हैं।
63. हम यौगाभिमत वाले पांचरूप्य हेतु का लक्षण जो बताते हैं वह सही है क्योंकि निर्दोष है, पूर्वोक्त एक शाखा प्रभत्व हेतु इसलिये असत् हुआ कि उसमें अबाधित विषयत्व नामा लक्षण नहीं है, आत्म प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा ही एक शाखा प्रभवत्व हेतु का विषय [साध्य] बाधित होता है, तत्पुत्रत्वादि हेतु भी असत् प्रतिपक्षत्व नामा लक्षण के
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 107