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अनुमानप्रमाणविमर्शः अथेदानीमनुमानलक्षणं व्याख्यातुकामः साधनादित्याद्याहसाधनात्साध्यविज्ञानमनुमानम् ॥14॥
57. साध्याऽभावाऽसम्भवनियमनिश्चयलक्षणात् साधनादेव हि शक्याऽभिप्रेताप्रसिद्धत्वलक्षणस्य साध्यस्यैव यद्विज्ञानं तदनुमानम्। प्रोक्तविशेषणयोरन्यतरस्याप्यपाये ज्ञानस्यानुमानत्वासम्भवात्।
58. ननु चास्तु साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानम्। तत्तु साधनं निश्चितपक्षधर्मत्वादिरूपत्रययुक्तम्। पक्षधर्मत्वं हि तस्यासिद्धत्वव्यवच्छेदार्थं
अनुमान प्रमाण विमर्श अब यहाँ अनुमान प्रमाण के लक्षण का व्याख्यान करते हैंसाधनात् साध्यविज्ञानमनुमानम् ॥14॥
सूत्रार्थ- साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान प्रमाण कहते हैं।
57. जो साध्य के अभाव में नियम से नहीं होता ऐसे निश्चित साधन से शक्य अभिप्रेत एवं असिद्ध लक्षण वाले साध्य का जो ज्ञान होता है उसे अनुमान कहते हैं, शक्य अभिप्रेत और असिद्ध इन तीन विशेषणों में से यदि एक भी न हो तो वह साध्य नहीं कहलाता तथा साध्य के अभाव में नियम से नहीं होना रूप विशेषण से रहित साधन भी साधन नहीं कहलाता अतः उक्त विशेषणों में से एक के भी नहीं होने पर उक्त ज्ञान का अनुमानपना सम्भव नहीं है।
58. अब यहाँ पर बौद्ध शंका करते हैं कि- साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान प्रमाण कहते हैं यह अनुमान की व्याख्या तो सत्य है, किन्तु इसमें जो साधन (हेतु) होता है वह पक्ष
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 103