________________
3/13
54. पारिशेष्यात्तादृशेन व्यापकेनान्यत्र तादृशस्य व्याप्तिसिद्धिश्चेत्, ननु किमिदं पारिशेष्यम् - प्रत्यक्षम्, अनुमानं वा ? न तावत्प्रत्यक्षम्; देशान्तरस्थस्यानुमेवस्य प्रत्यक्षेणाप्रतिपत्ते, अन्यथानुमानानर्थक्यानुषङ्गः नाप्यनुमानम्; तत्राप्यनुमानान्तरेण व्याप्तिप्रतिपत्तावनवस्थाप्रसङ्गात् तेनैव तत्प्रतिपत्तावन्योन्याश्रयः ।
55. एतेन साध्यसाधनयो: साकल्येनानुमानाद्याप्तिप्रतिपत्तेस्तर्कस्याप्रामाण्यमिति प्रत्युक्तम् । तन्न प्रत्यक्षानुमानयोः साकल्येन व्याप्तिप्रतिपत्तौ सामर्थ्यम्।
देशांतर में स्थित अनुमेय अर्थ की प्रत्यक्ष द्वारा प्रतिपत्ति होना असम्भव है, यदि प्रत्यक्ष से ही उसकी प्रतिपत्ति होगी तो अनुमान प्रमाण मानना व्यर्थ ठहरता है। अनुमान को पारिशेष्य ज्ञान कहना भी ठीक नहीं क्योंकि उस पारिशेष्य रूप अनुमान की व्याप्ति को यदि अन्य अनुमान द्वारा ज्ञात होना स्वीकार करते हैं तो अनवस्था दूषण आता है और उसी अनुमान द्वारा ज्ञात होना स्वीकारते हैं तो अन्योन्याश्रय दूषण प्राप्त होता है।
55. इस प्रकार यहाँ तक यह सिद्ध हुआ कि प्रत्यक्ष से व्याप्ति का ग्रहण नहीं होता है। इसी कथन से साध्य साधन की व्याप्ति साकल्य से अनुमान द्वारा गृहीत होती है अतः तर्क अप्रमाणभूत है ऐसा कहना भी खंडित हुआ मानना चाहिए।
अतः यह निश्चित हुआ कि प्रत्यक्ष और अनुमान में पूर्णरूपेण व्याप्ति को ग्रहण करने की सामर्थ्य नहीं है। इसके लिये तर्क हो जरूरी है।
102 :: प्रमेयकमलमार्त्तण्डसारः