SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3/13 52. ननु कार्यं धूमो हुतभुजः कार्यधर्मानुवृत्तितो विशिष्टप्रत्यक्षानुपलम्भाभ्यां निश्चितः, स देशान्तरादौ तदभावेपि भवंस्तत्कार्यतामेवातिवर्तेत, इत्याकस्मिकोऽग्नि निवृत्तौ न क्वचिदपि निवर्तेत, नाप्यवश्यंतया तत्सद्भावे एव स्यादिति, अहेतोः खरविषाणवत्तस्यासत्त्वात् क्वचिदप्युपलम्भो न स्यात्, सर्वत्र सर्वदा सर्वाकारेण वोपलम्भः स्यात्। स्वभावश्च 'तद्वतीर्थस्याभावेपि यदि स्यात्तदार्थस्य निःस्वभावत्वं स्वभावस्य वाऽसत्त्वं स्यात्, तत्स्वभावतया चास्य कदाचिदप्युपलम्भो न स्यात्। उक्तञ्च कार्यं धूमो हुतभुजः कार्यधर्मानुवृत्तितः। सम्भवंस्तदभावेपि हेतुमत्तां विलङ्घयेत्॥ प्रत्यक्ष द्वारा व्याप्ति का अनिश्चय होने से देशान्तरादि में वह साधन स्वसाध्य का गमक नहीं हो सकता। 52. यहाँ पर कोई कहता है कि- कार्य धर्म की अनुवृत्ति होने से प्रत्यक्ष एवं अनुपलम्भ द्वारा धूम अग्नि का कार्य है ऐसा निश्चित हो जाता है, यदि वह देशान्तर में अग्नि के अभाव में भी उपलब्ध होता है तो उसका कार्य कहलाता, इस तरह अकारण रूप सिद्ध होने से कहीं पर अग्नि के निवृत्त होने पर भी निवृत्त नहीं होगा तथा उसके सद्भाव होने पर नियमितपने से सद्भाव रूप भी नहीं रहेगा, इस प्रकार खरविषाण के समान उस अहेतुक धूम की असत्व होने से कहीं पर भी उपलब्धि नहीं हो सकेगी अथवा सर्वत्र सर्वदा सर्वाकार से उपलब्धि होने लगेगी। कार्य हेतु के समान स्वभाव हेतु की भी बात है, यदि स्वभाव भी स्वभाववान् अर्थ के अभाव में रहेगा तो स्वभाववान् अर्थ नि:स्वभाव बन जायेगा अथवा स्वभाव का ही असत्व हो जायेगा, फिर तो पदार्थ के स्वभावरूप से इसकी कहीं भी उपलब्धि नहीं हो सकेगी। कहा भी है अग्नि के कार्य धर्म की अनुवृत्ति होने से धर्म उसका कार्य कहलाता है, यदि वह अग्नि के अभाव में होता तो उसका कार्य नहीं कहा जाता ॥1॥ 8. प्रमाणवार्तिक 1/35 100:: प्रमेयकमलमार्तण्डसार:
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy