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________________ 3/11 पुनर्वा दृढतरं निश्चयानिश्चयौ न भूयोदर्शनादर्शने। तेनातीन्द्रियसाध्यसाधनयोरागमानुमाननिश्चयानिश्चयहेतुकसम्बन्धबोधस्यापि सङ्ग्रहान्नाव्याप्तिः। 42. यथा 'अस्त्यस्य प्राणिनो धर्मविशेषो विशिष्टसुखादिसद्भावान्यथानुपपत्तेः' इत्यादौ, 'आदित्यस्य गमनशक्तिसम्बन्धोऽस्ति गतिमत्त्वान्यथानुपपत्तेः' इत्यादौ च। न खलु धर्मविशेषः प्रवचनादन्यतः प्रतिपत्तुं शक्यः, नाप्यतोनुमानादन्यतः कुतश्चित्प्रमाणादादित्यस्य गमनशक्तिसम्बन्धः साध्यत्वाभिमतः, साधनं वा गतिमत्त्वं देशाद्देशान्तरप्राप्तिमत्त्वानुमानादन्यत इति। धूमरूप साधन होता है और साध्य के न होने पर साधन भी नहीं होता ऐसा दृढ़तर ज्ञान होना उपलम्भ अनुपलम्भ है। साध्य साधन का बार-बार प्रत्यक्ष होना उपलम्भ है और उनका प्रत्यक्ष न होना अनुपलम्भ है ऐसा उपलम्भ अनुपलम्भ शब्दों का अर्थ यहाँ इष्ट नहीं है। इसीलिये जो साध्य साधन इन्द्रियगम्य नहीं है, जिनका उपलम्भ अनुपलम्भ (साध्य साधन के अविनाभाव का ज्ञान) आगम एवं अनुमान प्रमाण द्वारा होता है, उनके व्याप्ति ज्ञान का भी तर्क प्रमाण में संग्रह हो जाता है, अतः सूत्रोक्त तर्क प्रमाण लक्षण अव्याप्ति दोष युक्त नहीं है। 42. जिस साध्य साधन का अविनाभाव आगम द्वारा गम्य है उसका उदाहरण इस प्रकार है- इस प्राणी के धर्म विशेष [पुण्य] है क्योंकि विशिष्ट सुखादि के सद्भाव की अन्यथानुपपत्ति है। जिस साध्य साधन की व्याप्ति अनुमानगम्य होती है उसका उदाहरण इस प्रकार है- सूर्य के गमन शक्ति सद्भाव है क्योंकि गतिमान की अन्यथानुपपत्ति है इत्यादि। प्राणी के पुण्य विशेष को जानने के लिए आगम को छोड़कर अन्य कोई प्रमाण नहीं है तथा अनुमान प्रमाण को छोड़कर अन्य किसी प्रमाण से सूर्य के गमन शक्ति को जानना भी शक्य नहीं है, अर्थात् गमन शक्ति का सम्बन्ध रूप साध्य और गतिमत्व रूप साधन देश से देशान्तर की प्राप्ति रूप हेतु वाले अनुमान द्वारा ही उक्त व्याप्ति का ज्ञान होता है। प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 95
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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