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________________ 3/11 सम्बन्धप्रतिपत्तिवत्। ततः प्रत्यभिज्ञा प्रमाणमभ्युपगन्तव्या। तर्कप्रमाणविमर्शः अथेदानीमूहस्योपलम्भेत्यादिना कारणस्वरूपे निरूपयतिउपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः ॥11॥ 41. उपलम्भानुपलम्भौ साध्यसाधनयोर्यथाक्षयोपशमं सकृत् पुनः होना युक्त है, न कि अन्य व्यक्ति के अन्य किसी वस्तु के देखने से अग्नि का ज्ञान होना युक्त है। प्रत्यभिज्ञान के बिना "यह उसके समान अग्नि है" इत्यादि प्रतीति नहीं होती, क्योंकि पूर्व पर्याय को ग्रहण करने वाले प्रत्यक्ष द्वारा उत्तर पर्याय का ग्रहण नहीं होता और उत्तरकालीन पर्याय को ग्रहण करने वाले प्रत्यक्ष द्वारा पूर्व पर्याय का ग्रहण नहीं होता। उभय पर्यायों में होने वाले सादृश्य का ज्ञान उभय को जानने से ही होगा जैसे सम्बन्ध का ज्ञान उभय पदार्थों के जानने से होता है। इसलिये प्रत्यभिज्ञान को प्रमाणभूत स्वीकार करना चाहिये। तर्कप्रमाण विमर्श अब यहाँ पर तर्क प्रमाण के कारण का तथा स्वरूप का वर्णन करते हैं उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः ॥11॥ सूत्रार्थ- उपलम्भ (साध्य के होने पर साधन का होना) तथा अनुपलम्भ (साध्य के अभाव में साधन का नहीं होना) के निमित्त से होने वाले व्याप्ति ज्ञान को तर्क कहते हैं। 41. व्याप्ति ज्ञान के दो कारण हैं- एक प्रत्यक्ष उपलम्भ और एक अनुपलम्भ। अग्नि के होने पर धूम के होने का ज्ञान प्रत्यक्ष उपलम्भ है और अग्नि के अभाव में धूम के अभाव का ज्ञान अनुपलम्भ है। इन अग्नि और धूमादि रूप साध्य साधनों का क्षयोपशम के अनुसार एक बार में अथवा अनेक बार में दृढ़तर निश्चय अनिश्चय होना उपलम्भ अनुपलम्भ कहलाता है, अर्थात् इस अग्निरूप साध्य के होने पर ही यह 94:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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