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________________ 3/4 यथा स वेवदत्त इति ॥4॥ 3. यथेत्युदाहरणप्रदर्शने। स देवदत्त इति । एवं प्रकारं तच्छब्दपरामृष्टं यद्विज्ञानं तत्सर्वं स्मृतिरित्यवगन्तव्यम् । न चासावप्रमाणं संवादकत्वात् । यत्संवादकं तत्प्रमाणं यथा प्रत्यक्षादि संवादिका च स्मृतिः तस्मात्प्रमाणम्। " 4. ननु कोयं स्मृतिशब्दवाच्योर्थ :- ज्ञानमात्रम्, अनुभूतार्थविषयं वा विज्ञानम् ? प्रथमपक्षे प्रत्यक्षादेरपि स्मृतिशब्दवाच्यत्वानुषङ्गः तथा च कस्य दृष्टान्तता? न खलु तदेव तस्यैव दृष्टान्तो भवति । 5. द्वितीयपक्षेपि देवदत्तानुभूतार्थे यज्ञदत्तादिज्ञानस्य स्मृतिरूपताप्रसङ्गः । अथ 'येनैव यदेव पूर्वमनुभूतं वस्तु पुनः कालान्तरे तस्यैव तत्रैवोपजायमानं यथा स देवदत्त इति ॥4॥ सूत्रार्थ जैसे यह वही देवदत्त है इस प्रकार का प्रतिभास होना स्मृति है। 3. सूत्र में “ यथा" शब्द उदाहरण का प्रदर्शन करता है । " वह देवदत्त" इस प्रकार का तत् शब्द का परामर्श करने वाला जो ज्ञान है वह सब स्मृति रूप है ऐसा समझना। यह ज्ञान अप्रमाण नहीं है क्योंकि संवादक है। जो ज्ञान संवादक होता है, वह प्रमाण है, जैसे- प्रत्यक्षादि ज्ञान है। स्मृति भी संवादक है अतः प्रमाण है। 4. यहाँ बौद्ध प्रश्न करते हैं कि स्मृति शब्द का वाच्य अर्थ क्या है? ज्ञान मात्र को स्मृति कहते हैं या अनुभूत विषय वाले ज्ञान को? प्रथम पक्ष में ज्ञान मात्र को स्मृति कहते हैं तो प्रत्यक्षादि प्रमाण भी स्मृति शब्द के वाच्य हो जायेंगे फिर उपर्युक्त अनुमान में दृष्टान्त किसका होगा ? वही उसका दृष्टान्त तो नहीं हो सकता । 5. दूसरा पक्ष अनुभूत विषय वाले ज्ञान को स्मृति कहते हैं ऐसा कहें तो देवदत्त के द्वारा अनुभूत विषय में यज्ञदत्त आदि के ज्ञान को स्मृतिपना होने का प्रसंग आयेगा। यदि कहें कि जिसके द्वारा जो विषय पूर्व में अनुभूत हैं पुनः कालान्तर में उसी का उसी में ज्ञान उत्पन्न होना स्मृति है सो यह कथन असत् है "अनुभूत में उत्पन्न हुआ हूँ" इस 76 :: प्रमेयकमलमार्त्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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