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________________ 3/2-3 तन्निमित्तप्रकारप्रकाशनाय प्रत्यक्षेत्याद्याहप्रत्यक्षादिनिमित्तं स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतर्कानुमानागमभेदम् ॥2।। प्रत्यक्षादिनिमित्तं यस्य, स्मृत्यादयो भेदा यस्य तथोक्तम्। तत्र स्मृतेस्तावत्संस्कारेत्यादिना कारणस्वरूपे निरूपयतिस्मृतिप्रमाणविमर्शः संस्कारोबोधनिबन्धना तदित्याकारा स्मृतिः ॥3॥ 2. संस्कारः सांव्यवहारिकप्रत्यक्षभेदो धारणा। तस्योद्बोधः प्रबोधः। स निबन्धनं यस्याः तदित्याकारो यस्याः सा तथोक्ता स्मृतिः। विनेयानां सुखावबोधार्थं दृष्टान्तद्वारेण तत्स्वरूपं निरूपयति प्रत्यक्षादिनिमित्तं स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतर्कानुमानागमभेदम् ॥2॥ सूत्रार्थ- जिसमें प्रत्यक्ष प्रमाण आदिक निमित्त हैं वह परोक्ष प्रमाण है। इसके स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान एवं आगम- ऐसे पाँच भेद हैं। अब इन भेदों का वर्णन करते हुए सबसे पहले स्मृति प्रमाण का कारण तथा स्वरूप बतलाते हैंस्मृतिप्रमाणविमर्श संस्कारोबोधनिबंधना तदित्याकारा स्मृतिः ॥3॥ सूत्रार्थ- जो ज्ञान संस्कार से होता है जिसमें “वह" इस प्रकार का आकार (प्रतिभास) रहता है वह स्मृति प्रमाण है। 2. संस्कार का अर्थ धारणा ज्ञान है जो सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष का भेद है, उस धारणा ज्ञान का उद्बोध होना स्मृति है। यहाँ पर शिष्यों को सरलता से समझ में आने के लिए दृष्टान्त द्वारा स्मृति का स्वरूप बतलाते हैं प्रमेयकमलमार्तण्डसार:: 75
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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