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________________ 2/12 'प्रतिनियतशक्तित्वाद्भावानाम् इत्युत्तरं ग्राह्यग्राहकभावेपि समानम्। अथेदानीं मुख्यप्रत्यक्षप्ररूपणस्यावसरप्राप्तत्वात् तदुत्पत्तिकारणस्वरूप प्ररूपणायाह सामग्रीविशेषविश्लेषिताखिलावरणमतीन्द्रियमशेषतो मुख्यम् ॥12॥ 34. 'विशदं प्रत्यक्षम्' इत्यनुवर्त्तते । तत्राशेषतो विशदमतीन्द्रियं यद्विज्ञानं तन्मुख्यं प्रत्यक्षम् । किंविशिष्टं तत् ? सामग्रीविशेषविश्लेषिताखिलावरणम् । 35. ज्ञानावरणादिप्रतिपक्षभूता होह सम्यग्दर्शनादिलक्षणान्तरङ्गा बहिरङ्गानुभवादिलक्षणा सामग्री गृह्यते, तस्या विशेषोऽविकलत्वम्, तेन विश्लेषितं क्षयोपशमक्षयरूपतया विघटितमखिलमवधिमन:पर्ययकेवलज्ञानसामग्रीविशेषविश्लेषिताखिलावरणमतीन्द्रियमशेषतो मुख्यम् ||12|| सूत्रार्थ - (सम्यग्दर्शनादिरूप अन्तरङ्ग और देशकालादिरूप बहिरङ्ग) सामग्री की विशेषता (समग्रता ) से विश्लेषित (अर्थात् दूर हो गये हैं), समस्त (ज्ञानावरणदि) आवरण जिसके ऐसे अतीन्द्रिय और पूर्ण रूप से विशद ज्ञान को मुख्य प्रत्यक्ष कहते हैं। द्रव्यादि सामग्री विशेष के द्वारा नष्ट हो गये हैं सम्पूर्ण आवरण जिसके ऐसे अतीन्द्रिय तथा पूर्णज्ञान को मुख्य प्रत्यक्ष कहते हैं। 34. विशद ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं ऐसा प्रकरण चल रहा है उसमें जो पूर्णरूप से विशद हो तथा अतीन्द्रिय हो वह ज्ञान मुख्य प्रत्यक्ष या पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहलाता है। वह कैसा है? सामग्री विशेष से नष्ट हो गये हैं संपूर्ण आवरण जिसके, ऐसा है। 35. यहाँ पर ज्ञानावरण आदि कर्मों के प्रतिपक्ष स्वरूप जो सम्यग्दर्शन आदि हैं वह अन्तरंग सामग्री कहलाती है और अनुभव आदि का होना बहिरंग सामग्री है, यह अनेक प्रकार की है, इन दोनों सामग्री का होना सामग्री विशेष है, इस सामग्री विशेष से नष्ट हो गये हैं आवरण जिसके ऐसा यह प्रत्यक्ष है अर्थात् अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान की अपेक्षा क्षयोपशम रूप होना और केवलज्ञान की अपेक्षा क्षय होना ऐसे प्रमेयकमलमार्तण्डसार:: 71
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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