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सम्बन्ध्यावरणम् अखिलं निश्शेष वाऽऽवरणं यस्यावधिमन:पर्ययकेवलज्ञानत्रयस्य तत्तथोक्तम्।
36. अत्र च प्रयोगः-यद्यत्र स्पष्टत्वे सत्यवितथं ज्ञानं तत्तत्रापगताखिलावरणम् यथा रजोनीहाराद्यन्तरितवृक्षादौ तदपगमप्रभवं ज्ञानम्, स्पष्टत्वे सत्यवितथं च क्वचिदुक्तप्रकार ज्ञानमिति। तथाऽतीन्द्रियं तत् मनोऽक्षानपेक्षत्वात्। तदनपेक्षं तत् सकलकलङ्कविकलत्वात्। तद्विकलत्वं चास्यात्रैव प्रसाधयिष्यते। अत एव चाशेषतो विशदं तत्। यत्तु नातीन्द्रियादिस्वभावं न
ज्ञानावरण जिसके हुए उसे मुख्य प्रत्यक्ष कहते हैं, अर्थात् अवधिज्ञानावरण और मनःपर्ययज्ञानावरण का क्षयोपशम होने से अवधिज्ञान तथा मनःपर्ययज्ञान होता है और केवलज्ञानावरण का नाश हो जाने से केवलज्ञान होता है। ये ज्ञान मुख्य प्रत्यक्ष कहलाते हैं।
यहाँ अनुमान के द्वारा इस प्रत्यक्षज्ञान की सिद्धि करते हैं
36. जो ज्ञान जिस विषय में स्पष्ट होकर सत्य रूप से जानता है वह उस विषय में पूर्ण रूप से आवरण रहित होता है, जैसे धूली, कुहरा आदि से ढके हुए वृक्ष आदि पदार्थ हैं। उनका आवरण हटने से जो ज्ञान होता है वह स्पष्ट होकर सत्य कहलाता है, ऐसे ही अवधिज्ञानादिक स्पष्ट और सत्य है। यह मुख्य प्रत्यक्ष इन्द्रियाँ और मन की अपेक्षा नहीं रखता है अतः अतीन्द्रिय है, अपने आवरण के हटने से इन ज्ञानों में इन्द्रियादि की अपेक्षा नहीं रहती। आवरण के हट जाने से ही वह ज्ञान पूर्ण रूप से विशद हो गया है, जो ज्ञान अतीन्द्रिय आदि गुणविशिष्ट नहीं होता वह पूर्ण विशद या इन्द्रियादि से अनपेक्ष भी नहीं होता, जैसे कि हम जैसे का प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात् सांव्यावहारिक प्रत्यक्षज्ञान।
अवधिज्ञानादि तीनों ज्ञान अतीन्द्रिय आदि विशेषण युक्त होते हैं अत: मुख्य प्रत्यक्ष कहलाते हैं। अनुमान सिद्ध बात है कि अतीन्द्रिय होने
72:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः