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अहिंसा दर्शन पानी छान कर पिओ क्योंकि उसमें असंख्य जीव रहते हैं। पहले लोगों को विश्वास नहीं होता था कि पानी में जीव कहाँ से आये? हजारों-लाखों वर्षों से जैनधर्म ने अपने इस विश्वास को नहीं छोड़ा और अपनी बात कहता रहा। अब जाकर आधुनिक वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित किया है कि एक बूंद जल में 36,450 जीव होते हैं। पानी विधिपूर्वक नहीं छानने से इन जीवों की हिंसा तो होती ही है, साथ ही इससे स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। एक पुरानी कहावत है -
पानी पीओ छानकर, जीव जन्तु बच जायें। लोग कहें धर्मात्मा, रोग निकट नहिं आयें।
यदि जीवों की हिंसा से बचना चाहते हो तो पानी को विधिपूर्वक छानकर ही प्रत्येक कार्य में उपयोग लेना चाहिए।
3. रात्रि-भोजन त्याग -
जैनधर्म में रात्रि-भोजन का निषेध है। जैनधर्म के अनुसार सूर्य की किरणों से वातावरण शुद्ध रहता है और सूर्यास्त के बाद रात्रि में अनेक जीव उत्पन्न होते हैं, जो वातावरण को अशुद्ध करते हैं। रात्रि में भोजन बनाने और खाने से बहुत हिंसा होती है। साथ ही रात्रि में पाचन क्रिया मन्द होने से, भोजन करने से स्वास्थ्य पर भी गलत प्रभाव पड़ता है। अतः रात्रि में भोजन न बनाना चाहिए और न ही करना चाहिए।
रात्रि में अन्न ग्रहण करना खाने के प्रति अत्यधिक आसक्ति को दर्शाता है। जैन परम्परा में तो सभी आचार शास्त्र रात्रि भोजन का कड़ा निषेध करते ही हैं साथ ही वैदिक परम्परा में भी रात्रि के भोजन को उचित नहीं माना गया है। महाभारत में लिखा हैं-2
"श्वभ्रद्वाराणि चत्वारि प्रथमं रात्रिभोजनम्।"
1. 2.
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय - श्लोक 129 से 134 महाभारत, शान्तिपर्व, 15-16