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अहिंसा दर्शन
4. कामतीव्राभिनिवेश - विषय-भोग की तीव्र लालसा रखना, दिन-रात उसी के बारे में सोचना, कामतीव्राभिनिवेश है।
5. इत्वरिकागमन - चरित्रहीन स्त्री या पुरुषों से सम्बन्ध रखना, उनके यहाँ आना-जाना इत्वरिकागमन कहलाता है।
अब्रह्मचर्य भी हिंसा ही है। ब्रह्मचर्यव्रत के सङ्कल्प को पुष्ट करने और उसके संवर्धन करने के लिए पाँच भावनाएँ करने योग्य हैं - (1) कामवासना उत्पन्न करने वाले अश्लील साहित्य को नहीं पढ़ना
चाहिए और तत्सम्बन्धी कथा, चर्चा, भाषण इत्यादि क्रियाकलापों में भाग नहीं लेना चाहिए।
कामोत्तेजक वस्त्र आदि नहीं पहनना चाहिए और तदनुरूप शरीर को नहीं सजाना चाहिए। स्त्री या पुरुष की तरफ विकारभाव से नहीं देखना चाहिए। पूर्वकाल में यदि कोई भोग भोगा है तो उसका स्मरण नहीं करना चाहिए। इन्द्रिय-वासना बढ़ाने वाले कामोत्तेजक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
(5)
वर्तमान में काम-सेवन की तुलना पौरुष से की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो जितना कामुक है या काम-पुरुषार्थ करता है, वह उतना ही बलवान या बलशाली है किन्तु यह भ्रान्त धारणा है। अधिक कामवासना कमजोरी की सूचक होती है। एक शोध से ज्ञात हुआ है कि शेर जैसा शक्तिशाली जानवर, वर्ष में एक बार ही सम्भोग करता है; अन्य पशु-पक्षी भी अपने निश्चित ऋतुकाल में ही कामसेवन करते हैं किन्तु मात्र मनुष्य के जीवन में भोग का कोई नियम या सीमा का विवेक नहीं है।
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त.सू. 7.7