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तृतीय अध्याय
41 4. प्रतिरूपक-व्यवहार - मिलावट करना, नकली को असली बताना, नकली दवा तथा अन्य वस्तुयें आदि बेचना प्रतिरूपक-व्यवहार कहलाता है।
5. हीनाधिक-मानोन्मान - कम तौलना, कर-चोरी करना, हिसाब की हेरा-फेरी आदि करना, हीनाधिक-मानोन्मान कहलाता है।
___ इन अतिचारों से अचौर्यव्रत में दोष लगता है। इस व्रत में दृढ़ता लाने के लिए नीतिपूर्वक कमाए गए द्रव्य से अपनी आय के अनुसार ही आजीविका चलाने का सङ्कल्प करना चाहिए। ब्रह्मचर्यव्रत
यौनाचार या मैथुन' के त्याग को ब्रह्मचर्य कहते हैं । यद्यपि गृहस्थ के लिए विवाह का मार्ग खुला है तथापि स्वपति या स्वपत्नी-सन्तोषव्रत के साथ अन्य स्त्री या अन्य पुरुष को विकारभाव से भी नहीं देखना, ब्रह्मचर्याणुव्रत है। उन्मुक्त यौनाचार ने आज एड्स आदि कई ज्वलन्त समस्याओं को जन्म दिया है, इनसे परिवार और समाज में अशान्ति और विग्रह फैलता है। जहाँ गृहस्थ को ब्रह्मचर्याणुव्रत आंशिक संयम प्रदान करता है, वहीं साधु को ब्रह्मचर्य महाव्रत पूर्ण संयम प्रदान करता है।
ब्रह्मचर्यव्रत को भी दूषित करनेवाले पाँच अतिचार हैं -
1. परविवाहकरण - दूसरे का विवाह करवाना, दिन-रात उसी चिन्ता में रहना, अपने परिवार के अलावा दुनिया भर के विवाह की सोचना आदि क्रियाएँ, परविवाहकरण कहलाती हैं।
2. अनङ्गक्रीड़ा - विकृत और उच्छृङ्खल यौनाचार में रुचि रखना, अप्राकृतिक मैथुन करना, समलैंगिकता आदि अनङ्गक्रीड़ा कहलाती है।
3. विटत्व - काम-सम्बन्धी कुचेष्टाएँ करना, विटत्व है।
मैथुनमब्रह्म। त.सू. 7.16 2. त.सू. 7.28
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