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अहिंसा दर्शन
सत्यव्रत के निर्दोष पालन के लिए इन अतिचारों से बचना चाहिए, इनसे परिवार, समाज, राष्ट्र आदि की शान्ति भङ्ग होती है।
मनुष्य क्रोध, लोभ, भय और हास्य में ही प्रायः असत्य बोलता है; इसीलिए क्रोध और लोभ पर नियन्त्रण करना, भय को त्यागकर आत्मविश्वासपूर्वक निर्भीक जीवन जीना, व्यङ्ग्यात्मक और अश्लील हास्य से बचना, सत्यव्रत की पाँच भावनाएँ हैं।
अचौर्यव्रत
चोरी भी हिंसा का ही रूप है। जब किसी की कोई वस्तु चोरी हो जाती है या वह कहीं ठगा जाता है, तब उसे बहुत मानसिक पीड़ा होती है
और भौतिक कष्ट भी होता है; अतः जब तक चोरी का त्याग न हो, तब तक अहिंसा का पालन भी नहीं हो सकता और सत्य का निर्वाह भी नहीं हो सकता। किसी की भूली हुई, रखी हुई वस्तु को बिना उसकी आज्ञा के ले लेना, चोरी है। चोरी का त्याग करना, अचौर्यव्रत है।'
अचौर्यव्रत के भी पाँच अतिचार हैं -
1. चौर-प्रयोग - चोरी की योजना बनाना, चोरी या चोर की प्रशंसा या समर्थन करना और चोरी करने के लिए तरह-तरह के उपाय बताना, चौर-प्रयोग कहलाता है।
2. चौरार्थ-आदान - चोरी की वस्तु खरीदना, चोर-डाकुओं को संरक्षण और सहायता देना, चौरार्थ-आदान कहलाता है।
3. विरुद्धराज्यातिक्रम - न्यायमार्ग को छोड़कर अन्य प्रकार से किसी की जमीन छीन लेना, अतिक्रमण करना, कब्जा करना, घूस आदि लेना-देना, राज्य या राष्ट्र द्वारा निर्धारित कानूनों का उल्लंघन आदि विरुद्धराज्यातिक्रम कहलाता है।
1. 2.
अदत्तादानं स्तेयम् । त.सू. 7.15 त.सू. 7.27