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तृतीय अध्याय
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पूरक हैं। अहिंसा यथार्थ को सौन्दर्य प्रदान करती है, और यथार्थ, अहिंसा को सुरक्षा देता है अहिंसा रहित सत्य, कुरूप है और सत्यरहित अहिंसा, क्षणस्थायी है, असुरक्षित है। इसलिए अहिंसा की आराधना के लिए सत्य की आराधना अनिवार्य है। झूठ नहीं बोलना तथा हित- मित-प्रिय वचन बोलना सत्यव्रत है।
सत्यव्रत को दूषित करने वाले, पाँच अतिचार हैं
1. परिवाद
2. रहो भ्याख्यान - किसी के गोपनीय रहस्यों को उजागर करना, प्रलोभन
में आकर देश की रक्षा, उद्योग या अर्थव्यवस्था सम्बन्धी सूचनाएँ आदि विरोधियों को देना, रहोभ्याख्यान कहलाता है।
3. पैशून्य
निन्दा करना, गाली देना, वचनों से ऐसा वातावरण बनाना, जिससे परिवार, समाज, राष्ट्र आदि में अशान्ति उत्पन्न होना, परिवाद कहलाता है।
1.
2.
किन्हीं दो लोगों को लड़वाने के लिए चुगली करना, इधर-उधर की बातें करना, पीठ पीछे बुराई आदि करना, पैशून्य कहलाता है।
4. कूटलेखक्रिया - नकली दस्तावेज बनाना, झूठे सर्टिफिकेट बनाना, जाली हस्ताक्षर, लिखा-पढ़ी में फेर-बदल करना आदि कूटलेखक्रिया कहलाती है।
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5. न्यासापहार अपने पास रखी किसी की धरोहर न देना, या भुला देना, किसी की सम्पत्ति हड़प लेना, मजदूरों को नियमानुसार वेतन आदि नहीं देना या उनमें कटौती आदि करना न्यासापहार कहलाता है।
असदभिधानमनृतम् । त.सू. 7.14
मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः । वही, 7.26