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अहिंसा की प्रतिष्ठा
हम सभी में से ऐसा कौन होगा जो यह नहीं चाहता कि मनुष्यों में जाति, धर्म, राष्ट्र, भाषा आदि को लेकर कोई बैर भाव न रहे। सम्पूर्ण विश्व में शान्ति रहे, लोग लड़ें-झगड़ें नहीं, मारें-काटें नहीं, किन्तु इसके लिए क्या करना होगा? एक ही उत्तर है-'अहिंसा की प्रतिष्ठा करनी होगी तभी यह संभव है
'अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः"
आज वह समय अब आ गया है जब हमें शाश्वत मानवीय मूल्यों की रक्षा उसी प्रकार करनी है जैसा कि हमारे पूर्वज करते आये हैं। अहिंसा की गणना शाश्वत मूल्यों में सबसे पहले इसलिए की जाती है क्योंकि इसी से सम्पूर्ण जीवों का अस्तित्त्व जुड़ा हुआ है। अस्तित्त्व ही नहीं रहेगा तो शेष मूल्यों का हम करेंगे क्या? इसीलिए कहा गया है कि प्राणियों में अनुशासन भी अहिंसक-रीति नीति से किया जाना श्रेयस्कर है
'अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम्'2 क्योंकि अहिंसा सभी धर्मों में श्रेष्ठ धर्म है।'
इस बात को गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में श्रुतियों की साक्षी से कहा
'परमधरम श्रुति विदित अहिंसा,'4
विश्व शान्ति हेतु अहिंसा को जगत् की माता कहा गया है और माना गया है कि यही आनन्दानुभूति का एक मात्र साधन है
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योगसूत्र- 2/35 मनुस्मृति-2/159 महाभारत- 13/11/28, पद्मपुराण 6 (उत्तर) 64/63-64 - 'अहिंसा परमोधर्मः इति वेदेषु गीयते' रामचरितमानस, उत्तरकाण्ड, 130-ख
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