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गाथा परम विजय की
सहयोग कर देते हैं। जम्बूकुमार ने सोचा मैंने जो सफलता पाई है वह पुण्य कर्म के विपाक से पाई है। पर यह पुण्य मैंने कब अर्जित किया था? मैंने इस जन्म में तो किया नहीं? कब अर्जित किया? ___ जम्बूकुमार ने मन में एक प्रश्न पैदा हो गया। जब कोई बड़ा प्रश्न पैदा हो जाता है तब आदमी उसी चिंतन में लग जाता है।
अथ जम्बूकुमारेण, चिन्तितं निजमानसे।
कुतः पुण्योदयादेतन्, मया लब्धं यशोधनम्।। साधनाकाल में साधक बहुत बार यह प्रश्न पूछता है-मैं कौन हं? अनेक प्रसंगों में अपने आपसे भी यह प्रश्न पूछा जाता है-मैं कौन हूँ?
दूसरा प्रश्न है कुतः समायातः मैं कहां से आया हूं? तीसरा प्रश्न होता है किस कर्म के विपाक से मैं सफल हुआ हूं? ये तीन यक्ष प्रश्न जम्बूकुमार के सामने प्रस्तुत हो गये
कोऽहं कुतः समायातः कस्मात् पुण्यविपाकतः। मैं कौन हूं? यह अद्भुत प्रश्न है। आप लोगों ने भी शायद किसी दूसरे से नहीं, अपने आप से पूछा होगा। कोई भी आदमी सोचता है तो यह प्रश्न जरूर पूछता है कि मैं कौन हूं। अपने आपको जानने के लिए, पहचानने के लिए अपने आपसे यह प्रश्न पूछना बहुत जरूरी है। जो व्यक्ति यह प्रश्न नहीं पूछता, वह सदा अंधेरे में रहता है। उसके घर में कभी दीवाली नहीं आती। सदा दीवाली उसी के घर में आती है, जो यह प्रश्न स्वयं से पूछता है और उसके समाधान के लिए सचेष्ट रहता है। __ ऐसा कौन व्यक्ति है, जिसके मस्तिष्क में यह प्रश्न नहीं उभरता कि 'मैं कौन हूं।' जो व्यक्ति अहंकार और ममकार-इन दो में उलझा रहता है वह कभी यह नहीं पूछता-मैं कौन हूं। अहंकार इतना प्रबल होता है कि पूछने ही नहीं देता। 'मैं विद्वान् हूं', 'मैं धनी हूं', 'मैं शासक हूं-ये सारी धारणाएं इतनी रूढ़ जमी रहती हैं कि 'मैं कौन हूं' यह असली प्रश्न सामने आता ही नहीं है। हमारी सारी पहचान बाहरी बन जाती है, भीतर की पहचान समाप्त हो जाती है। बाहर में इतने आवरण आ गए कि भीतर में क्या है, यह दिखाई नहीं देता। कोई यह पूछता ही नहीं है कि मैं कौन हूं? 'मैं सुखी हूं', 'मैं दुःखी हूं', 'मैं पिता हूं', 'मैं पुत्र हूं' आदि-आदि प्रश्नों में इतना व्यामोह पैदा हो जाता है कि असली प्रश्न सामने नहीं आता किंतु जब कोई विशेष प्रसंग बनता है, तब यह प्रश्न उभरकर सामने आ जाता है।
आज जम्बूकुमार के सामने यह प्रश्न आ गया-'मैं कौन हूं।' यह प्रश्न उसे एकदम आकुल-व्याकुल कर रहा है, एक बेचैनी और छटपटाहट पैदा कर रहा है।
दूसरा प्रश्न उठा-मैं कहां से आया हूं? हर व्यक्ति के मन में अपने पूर्वजन्म को जानने की इच्छा रहती है। प्रेक्षाध्यान के शिविर में कुछ प्रयोग कराये जाते हैं तब अनेक लोग जिज्ञासा लेकर आते हैं कि मैं कहां से आया हूं? मैं पूर्वजन्म में क्या था? इसमें बड़ी रुचि रहती है। बड़ा आकर्षण है यह जानने का कि मैं कहां से आया हूं। प्राचीनकाल में यह प्रयोग बहुत चलता था। भगवान महावीर स्वयं यह प्रयोग कराते थे। कोई भी आता, कहीं विचलन की समस्या होती उसे पूर्वजन्म की स्मृति करा देते। जब पूर्वजन्म की स्मृति होती तब