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श्वेताम्बर परम्परा और दिगम्बर परम्परा में नामों में थोड़ा अंतर है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार जम्बूकुमार ऋषभदत्त का पुत्र है। उसकी मां का नाम है धारिणी।
जम्बूकुमार के आकर्षक, भव्य आभामंडल को देख जनता चित्रित रह गई-अरे! यह तो वही जम्बूकुमार है जिसने हाथी को वश में किया था।
एक संभ्रांत नागरिक ने कहा-'इस युवक ने गजब कर दिया। शक्तिशाली विद्याधर को जीतना कितना दुष्कर है? एक भूमिचर ने विद्याधर पर विजय प्राप्त कर नया इतिहास रचा है।' ___ 'धन्य हैं वे माता-पिता जिन्होंने इस पुत्र-रत्न को जन्म दिया है। यह उस कुल का किरीट है। इसने अपने कुल और नगर का नाम रोशन कर दिया है।' एक युवक ने अपने हृदय के उद्गार व्यक्त किए।
'यह किसी व्यक्ति का नहीं, पौरुष की प्रतिमा का सम्मान है। इसने अपने अतुलनीय पराक्रम से अपना अवर्णनीय कीर्तिस्तंभ रच दिया है।' एक सहदय कवि ने काव्यात्मक शैली में कहा। ___ सबके मुख पर यही यशोगाथा मुखर है-इसने राजगृह का गौरव समुन्नत किया है, महान् विजय का वरण किया है इसीलिए सम्राट श्रेणिक स्वयं इसका वर्धापन कर रहे हैं।
एक अपूर्व उल्लास जनता में जाग गया। जम्बूकुमार जनता की आंखों का तारा बन गया।
जयनादों और जयघोषों के बीच जम्बूकुमार राजभवन पहुंचा। सम्राट श्रेणिक ने राजप्रासाद के मुख्य द्वार पर जम्बूकुमार का अंतःपुर के साथ स्वागत किया, अनेक उपहार समर्पित किए। ___ जम्बूकुमार को सम्माननीय राजकीय अतिथि के रूप में राजप्रासाद से मंगलभाव से विदाई दी। हाथी के ओहदे पर राजकीय सम्मान के साथ श्रेष्ठीप्रासाद में पहुंचाया।
माता-पिता ने पुत्र के विजयोत्सव को परिवार के भाग्योदय के रूप में देखा। यह वृत्त जम्बूकुमार के जीवन का एक महान् अध्याय बन गया।
अनेक दिनों तक जम्बूकुमार राजगृह नगर में वार्तालाप का केन्द्र बिन्दु बना रहा।....शनैः-शनैः वार्ता के ये स्वर मंद होते चले गए। ___सम्राट् श्रेणिक, प्रजाजन एवं जम्बूकुमार आदि सभी जन सामान्य जीवनचर्या के अनुसार रहने लगे। संस्कृत व्याकरण में एक सूत्र आता है पूर्ववत्-सब कुछ पहले की तरह। नया कुछ भी नहीं। उत्सव सम्पन्न, कौतूहल सम्पन्न, जिज्ञासा सम्पन्न। ___ जो घटना घटित होती है, वह सम्पन्न हो जाती है, पर अनेक प्रश्न छोड़ जाती है। एक दिन जम्बूकुमार अपने प्रासाद में बैठा था। उसके मन में एक प्रश्न उठा–मैंने सफलता पाई है। यह निश्चित है कि सफलता पुण्योदय से मिलती है। भाग्य बलवान् होता है, सफलता मिलती है। बिना भाग्य के बहुत सारी बातें नहीं होतीं। भाग्य प्रबल होता है तो कार्य सध जाते हैं। भाग्य दर्बल है तो होने वाले काम भी रुक जाते हैं।
जो जन्मकुण्डली को देखते हैं या हाथ की रेखा को देखते हैं वे इस बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं कि इस जातक का भाग्य कैसा है? भाग्य बलवान् है या निर्बल? यदि भाग्य बलवान् है तो दूसरे ग्रह भी उसका
गाथा परम विजय की
१. पंडित राजमल्ल विरचित 'जंबूस्वामिचरितम्' में पिता का नाम अर्हद्दास और मां का नाम जिनमती है।
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