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________________ फिर उपदेश की ज्यादा जरूरत नहीं रहती। अपने पूर्वजन्म को साक्षात् देखता है तो आदमी अपने आप बदल जाता है। ____ मेघकुमार ने अपने पूर्वजन्म-मेरुप्रभ हाथी के भव को देखा, मेघकुमार बदल गया। भगवान महावीर ने उपदेश नहीं दिया, ज्यादा समझाने का प्रयत्न नहीं किया, केवल इतना ही कहा-'मेघकुमार! तूने हाथी के भव में कितना कष्ट सहा था। अब मनुष्य के भव में सम्राट् श्रेणिक के घर में जन्मा। राजकुमार बना और थोड़े से कष्ट में विचलित हो गया?' केवल संकेत भर किया। मेघकुमार ने अपना हाथी का भव देखा, उस हाथी को देखा जिसका भारी भरकम डील-डौल है, अति स्थूल शरीर है, वह उस जंगल में खड़ा है, जहां चारों ओर दावानल सुलग रहा है। कुछ भूभाग ही ऐसा है, जो सुरक्षित है। उसमें चारों तरफ पशु भरे हैं, कहीं इंच भर भी स्थान खाली नहीं है। वह हाथी अपना पैर ऊंचा करता है। एक खरगोश नीचे आकर बैठ जाता है। उस हाथी ने इसलिए नीचे पैर नहीं रखा कि खरगोश मर जायेगा। वह ढाई दिन तक इसी प्रकार रहा। आखिर दावानल बुझा। सब पशु बाहर निकले। खरगोश भी चला गया। हाथी ने पैर नीचे रखने का प्रयत्न किया पर रखे कैसे? इतने लंबे समय तक पैर को ऊपर रख लिया, वह अकड़ गया। पैर नीचे रखना संभव नहीं रहा। हाथी अपने शरीर को संभाल नहीं सका, नीचे लुढ़क पड़ा। ___अपनी उस स्थिति को मेघकुमार ने अपनी आंखों से देखा-वह हाथी मैं ही था और मैंने ही पैर को ऊंचा रखा था। मैंने कितना कष्ट सहन किया था। आज कहां है वह कष्ट? ___ जो मेघकुमार वापस घर जाने की तैयारी में आया था, वह अपने पूर्वजन्म को देखते ही बदल गया, बोला-'भंते! अब मैं साधु जीवन जीना चाहता हूं। साधु जीवन में रहूंगा। कष्ट से नहीं घबराऊंगा।' जब-जब पूर्वजन्म का चित्र सामने आता है, आदमी की सारी भावना बदल जाती है। जम्बूकुमार के मन में यही प्रश्न उठा मैं पूर्वजन्म को जान लूं। मैं कहां से आया हूं? वहां मैंने क्या किया था? महावीर के इस सिद्धांत को मैंने समझा है-अच्छे कर्म का फल अच्छा होता है, बुरे कर्म का फल बुरा होता है। सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला, दचिण्णा कम्मा दचिण्णा फला-इस सिद्धांत को मैं मानता हूं। इस सिद्धांत के अनुसार यह स्पष्ट है-मैंने कोई अच्छा कर्म किया है। मध्यकालीन साहित्यकारों और कवियों ने इस सिद्धांत को बहुत आगे बढ़ा दिया, बहुत अतिरेक भी कर दिया। यह ठीक है-अच्छे कर्म का फल अच्छा होता है पर अच्छा भी क्या मिलता है, उसकी भी एक सीमा है। यह नहीं कि सब कुछ मिल जाता है। यह बाहर का जितना संयोग मिलता है पुण्योदय से मिलता है। किंतु जहां अतिरेक होता है वहां यह भी मान्य हो गया कि सब कुछ धर्म से होता है। धर्म को ऐसी कामधेनु बना दिया कि जो चाहो मांग लो, सब कुछ मिल जायेगा। गाथा परम विजय की ८८
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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